देहरादून : वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है। वैज्ञानिकों को कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में बड़ा खतरा पनप रहा है। शोध में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों ने नदियों के प्रवाह को रोका है। उनसे बनने वाली झील के खतरों को लेकर अलर्ट जारी किया है।
वैज्ञानिकों का ये शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल ग्लोबल एंड प्लेनेट्री चेंज में प्रकाशित हुआ है। जाने-माने भूगोलवेत्ता प्रो. केनिथ हेविट ने भी इस शोध पत्र में अपना योगदान दिया है। वाडिया के वैज्ञानिकों के शोध पत्र को वाडिया संस्थान ने अपने 52 वें स्थापना दिवस पर पुरस्कृत भी किया है। वैज्ञानिक डा.राकेश भाम्बरी, डा.अमित कुमार, डा.अक्षय वर्मा और डा.समीर तिवारी ने 2019 में क्षेत्र में ग्लेशियर से नदियों के प्रवाह को रोकने संबंधी शोध आइस डैम, आउटबस्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनिटी ऑफ ग्लेशियर में सेटेलाइट इमेजरी, डिजीटल मॉडल, ब्रिटिशकालीन दस्तावेज, क्षेत्रीय अध्ययन की मदद ली है।
दैनिक जागरण में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार शोध में पाया गया कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पीओके वाले काराकोरम क्षेत्र में कुछ ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है। इस कारण ये ग्लेशियर विशेष अंतराल पर आगे बढ़कर नदियों का मार्ग रोक रहे हैं। इस प्रक्रिया में ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की बर्फ तेजी से ग्लेशियर के निचले हिस्से (थूथन-स्नाउट) की ओर आती है।
भारत की श्योक नदी के ऊपरी हिस्से में मौजूद कुमदन समूह के ग्लेशियरों में विशेषकर चोंग कुमदन ने 1920 के दौरान नदी का रास्ता कई बार रोका। इससे उस दौरान झील के टूटने की कई घटनाएं हुई। वर्तमान में क्यागर, खुरदोपीन व सिसपर ग्लेशियर ने काराकोरम की नदियों के मार्ग रोक झील बनाई है। इन झीलों के एकाएक फटने से पीओके समेत भारत के कश्मीर वाले हिस्से में जानमाल की काफी क्षति हो चुकी है। अमूमन बर्फ के बांध सामान्यतरू एक साल ही क्रियाशील रहते हैं। हाल में सिसपर ग्लेशियर से बनी झील ने पिछले साल 22-23 जून व इस साल 29 मई को ऐसे ही बांध बनाए।