नैनीताल(मो. यासीन):- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बाबा रामदेव की कोरोना वायरस से निजात दिलाने वाली ‘कोरोनील’ दवा को लांच किए जाने के खिलाफ जनहीत याचिका पर सुनवाई करते हुए गलत तथ्य पेश करने पर 25 हजार का जुर्माना लगाया है। याचिकाकर्ता मणि कुमार ने उच्च न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर न्यायालय से याचिका वापस लेने की प्रार्थना की । लेकिन न्यायालय ने उसका अमूल्य समय बरबाद करने पर याचिकाकर्ता पर 25 हजार का जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिका को खारीज कर दिया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि गलत तथ्य पेश करने पर समाज में इसका गलत प्रभाव पड़ता है। मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ और न्यायमूर्ति एन.एस.धनिक की खंडपीठ में हुई। याचिकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में कहा था कि बाबा रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने हरिद्वार में कोरोना वायरस से निजाद दिलाने के लिए पतंजलि योगपीठ की दिव्य फॉर्मेशी कम्पनी द्वारा निर्मित ‘कोरोनिल’ दवा को लांच किया।
याचिकर्ता का कहना था कि बाबा रामदेव कि दवा कम्पनी ने आई.सी.एम.आर.द्वारा जारी गाइड लाइनों का पालन नही किया और भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की अनुमति नही ली। कहा कि रामदेव की कंपनी ने आयुष विभाग उत्तराखंड से कोरोना की दवा बनाने के लिए आवेदन ही नही किया और जो आवेदन किया था वो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया गया था । रामदेव ने इसकी आड़ में ‘कोरोनिल’ दवा का निर्माण किया। कम्पनी ने राजस्थान के निम्स विश्विद्यालय से दवा का परीक्षण होना बताया, लेकिन निम्स का कहना है कि उन्होंने ऐसी किसी भी दवा का क्लिनिकल परीक्षण नही किया। याचिकर्ता ने दवा को इन चार बिंदुओं के आधार पर चुनौती दी थी। याची का यह भी कहना है कि बाबा, आम लोगों में अपनी इस दवा का भ्रामक प्रचार प्रसार कर रहे है । ये दवा न तो आई.सी.एम.आर.से प्रमाणित है और न ही इनके पास इसे बनाने का लाइसेंस है । इस दवा का अभी तक क्लिनिकल परीक्षण तक नही किया गया है। इसके उपयोग से शरीर में क्या साइड इफेक्ट होंगे इसका कोई विवरण नहीं है, इसलिए दवा पर पूर्ण रोक लगाई जाए और आई.सी.एम.आर.की गाइड लाइनों के आधार पर भ्रामक प्रचार करने के लिए कानूनी कार्यवाही की जाय।
खण्डपीठ ने याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया है।