देहरादून (मनीष डंगवाल): कैबिनेट मंत्री प्रकाश के निधन की खबर से हर कोई व्यथित है। उत्तराखंड में हर किसी की जुबान से प्रकाश पंत के लिए यही शब्द निकल रहे हंै कि उनके जैसा कोई दूसरा नहीं है। हम आपको बताएंगे कि प्रकाश पंत में ऐसी क्या खास बातें थीं, जो सियासत में उनको अलग पंक्ति में खड़ा करती है। प्रकाश पंत के व्यवहार का हर कोई कायल था और वह इसलिए नहीं कि सभी ने उनका मुस्कराता हुआ चेहरा ही देखा हो, बल्कि प्रकाश पंत जितने हंसमुख थे। व्यक्तिगत रूप से उतने ही उदार थे। उनकी पहचान उनकी सादगी और उनके संवाद से होती थी। उत्तराखंड भाजपा में उनको सबसे जानकार नेता माना जाता था। संससदीय ज्ञान का प्रकाश पंत भंडार थे। यही वजह थी रही कि भाजपा की जब-जब उत्तराखंड में सरकार आई तब-तब भाजपा ने प्रकाश पंत को बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी। पहली बार जब उत्तराखंड बनने के बाद प्रदेश में भाजपा ने अंतरिम सरकार बनाई, तब प्रकाश पंत सबसे कम उम्र में विधानसभा अध्यक्ष बने। 2007 और 2017 में भाजपा की प्रदेश में सरकार आने पर प्रकाश पंत को संसदीय कार्यमंत्री के साथ कई अहम विभागों की जिम्मेदारियां सौंपी गई। दो बार सरकार बनने पर प्रकाश पंत को संसदीय कार्यमंत्री और अंतरिम सरकार में विधानसभा अध्यक्ष का जिम्मा सौंपा गया जो सबसे अहम होते है।
सीएम ने भी माना प्रकाश पंत उनका दाहिना हाथ थे
प्रकाश पंत के चले जाने का दुःख बेशक उनके परिवार को सबसे ज्यादा सता रहा हो, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि भाजपा को उनके इस तरह चले जाने का कम दुःख नहीं है। भाजपा संगठन के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए पार्टी को मजबूत करने के लिए काम किया। प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि पार्टी के लिए प्रकाश पंत का योगदान अतुलनिय है। पार्टी के लिए भी प्रकाश पंत का इस तरह चले जाना बड़ा झटका है, जिसकी भरपाई मुश्किल है। वहीं, सदन के भीतर जिस तरह विपक्ष के हमलों से प्रकाश पंत सरकार का बचाव करते थे, विपक्ष के तेवर भी उनके बचाव के अंदाज से मुद्दों पर पीछे हटता हुआ नजर आता था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तो उन्हें सदन के भीतर अपना दाहिना हाथ कहा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना था कि प्रकाश पंत उनके दाहिने हाथ थे। मुख्यमंत्री के इस बयान का तात्पर्य इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले दो साल के कार्याकाल में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की गैरमौजूदगी में हमेशा सदन के भीतर सरकार की ढाल बनकर प्रकाश पंत ही खड़े नजर आए।
छल-कपट से दूर प्रकाश पंत
प्रकाश पंत ने अपने राजनैतिक जीवन में कभी भी छल-कपट की राजनीति नहीं अपनाई। यही वजह रही कि भाजपा में हो या विपक्षी दलों में प्रकाश पंत सबके प्रिय थे। प्रकाश पंत ने कभी ऐसा बयान भी अपने राजनैतिक जीवन में नहीं दिया, जिसपर उन पर सवाल उठे हों। मुद्दांे और आंकणों के साथ हमेशा प्रकाश पंत ने अपनी बात रखी। इसलिए राजनीति में उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा पाया। प्रकाश पंत का नाम 2009 और 2017 में मुख्यमंत्री बनने के लिए उठा, लेकिन प्रकाश पंत ने दोनों बार वो निति नहीं अपनाई, जिसके बलबूते उत्तराखंड के कई पर्वू मुख्यमंत्रियों ने मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की। इसलिए कहा जा सकता है कि प्रकाश पंत ने कभी भी कुर्सी पाने या चुनाव जितने के लिए छल-कपट की राजनीति नहीं कि। 2017 में और उसके बाद मुख्यमंत्री के दावेदार की चर्चाएं सत्ता के गलियारों में हमेशा गुजती रही और प्रकाश पंत को मुख्यमंत्री का दावेदार माना जाता रहा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि जब भी कोई एसी चर्चाएं, हुई प्रकाश पंत उनके पास आकर यही कहते रहे कि इन चर्चाओं में कोई दम नहीं है। इसलिए प्रकाश पंत के बारे में कई लोग यह भी मानते हैं कि प्रकाश पंत को कभी भी सरकार में कुर्सी और संगठन में दायित्व की लालसा नहीं रही। प्रकाश पंत को जो भी जिम्मेदारी मिली, उनका मकसद उस पर खरा उतरना होता था और उन्होंने सही साबित भी कर दिखया।
सत्ता में रहते हुए भी नहीं दिखा अंहकार
प्रकाश पंत उत्तराखंड के उन नेताओं में चुनिंदा नेताओं में शामिल है, जिनके चेहरे पर शायद ही किसी ने कभी गुस्सा देखा हो। प्रकाश पंत उन नेताओं में भी शामिल है, जिन्हें कभी सत्ता का नशा नहीं चढ़ा। उत्तराखंड में अक्सर देखा जाता है कि जिन विधायाकों को मंत्री पद मिलता है, उनमें अंहकार आ जाता है। लेकिन, प्रकाश पंत का सत्ता का नशा कभी अपनी आगोश में नहीं ले सका। प्रकाश पंत सत्ता में रहे हों या विपक्ष में उनके बात करने, मिलनेे-जुलने का तरिका हमेशा एक जैसा ही रहा। यहां तक कि जनता प्रकाश पंत से सीधे फोन से सम्पर्क में रहते थे, जो आज के समय में सत्ता में रहते हुए हर कैबिनेट मंत्री के लिए संभव नहीं रहता। या फिर वो रहना ही नहीं चाहते। त्रिवेंद्र कैबिनेट में जगह मिलने के बाद कई मंत्रियों ने तो अपने पुराने नम्बर, अपने पास रखना तक बंद कर दिया है। जनता से दूरी बना ली है। लेकिन, प्रकाश पंत ने कभी जनता से अपना जुड़ाव नहीं तोड़ा। त्रिवेंद्र कैबिनेट में शामिल कई मंत्रियों ने तो फोन पर उसी जनता से दूरी बना ली, जिसकी बदौलत वह मंत्री बने।
कर्मचारियों को प्रकाश पंत से रहती थी आस
उत्तराखंड में भाजपा सरकार के समय कर्मचारी संगठनों को प्रकाश पंत से अपनी मांगो को मनवाने के लिए बड़ी आस रहती थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को तो प्रकाश पंत पर इतना भरोषा था कि वह पिछले दो सालों में कर्मचारी संगठनों से वार्ता का जिम्मा प्रकाश पंत के उपर छोड़ देते थे। यहां तक कि उनके विभागों को छोड़कर अगर किसी दूसरे मंत्री के विभाग का मामला हो ता,े उस विभाग के कर्मचारी अपने विभागीय मंत्री के पास बाद में जाते थे। पहले वह प्रकाश पंत के सामने अपनी बात रखते थे। प्रकाश पंत उनको विभागीय मंत्री के सामने अपनी बात रखने का तरीका बता देते थे। यही कारण है कि कर्मचारी संगठनों को प्रकाश पंत के चले जाने से गहरा दुःख पहुंचा है।
खबर उत्तराखंड भी प्रकाश पंत को करता है नमन
प्रकाश पंत की तामम खूबियां हमने आपको अपनी इस खबर के माध्यम से बताई। प्रकाश पंत आज हमारे बीच नहीं हैं। वो पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं। खबर उत्तराखंड भी प्रकाश पंत को श्रद्धाजंलि देते हुए उनके किए कार्यों की सरहाना करता है।