देहरादून: वाड़िया संस्थान के भू-विज्ञानियों और वैज्ञानिकों की टीम ने केदारनाथ के ऊपर चैराबाड़ी में बन रही झील को लेकर जो अध्ययन किया है। उसके आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि झील से फिलहाल कोई खबरा नहीं है। भू-वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि इस वर्ष जनवरी-फरवरी में केदारनाथ और ऊपरी हिस्सों में अत्यधिक बर्फ गिरी थी, जो पिघलकर ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से में जम गई। इस झील से कोई खतरा नहीं है। हिमालय में इस तरह की झीलें बनती और टूटती रहती हैं।
उन्होंने एसडीआरएफ और पुलिस को 15-15 दिन में ताल का निरीक्षण करने को कहा, ताकि वास्तविक स्थिति की जानकारी मिलती रहे। उन्होंने बताया कि निरीक्षण की रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपी जाएगी। वाड़िया संस्थान की टीम ने बताया कि चोराबाड़ी ताल आपदा के बाद से अपनी पुरानी स्थिति में है। यहां पानी का स्राव बहुत कम है। उन्होंने बताया कि ताल के तीन किमी ऊपर ग्लेशियर में बर्फ पिघलने से झील बनी है। ये झीलें एक निश्चित समय में खुद ही ड्रेनेज हो जाती हैं।
दो दिनों तक टीम द्वारा इस पूरे क्षेत्र का निरीक्षण कर वहां की भौगोलिक स्थिति का जायजा लिया गया। टीम ने पाया कि चोराबाड़ी ताल आपदा के बाद से उसी स्थिति में है। यहां झील बनने की वर्षों तक कोई संभावना नहीं है, लेकिन यहां से करीब तीन किमी ऊपर ग्लेशियर के टॉप पर सुप्रा झील (एक निश्चित समय के लिए बनने वाली अस्थायी झील) बनी है। 30 फीट लंबी, 15 फीट चैड़ी और लगभग छह फीट गहरी यह झील बर्फ के पिघलने से बनी है। इसके आसपास तीन छोटे ताल और भी हैं।