पौड़ी गढ़वाल : बाबा केदारनाथ-बदरीनाथ के दर्शन के बाद सेवा प्रमुख गंगोत्री धाम गए और फिर वहां से अपने पत्नी के साथ अपने ननिहाल थाती गांव में पहुंचे, जहां वे अपने ममेरे भाई नरेंद्र पाल परमार और उनके परिवार से मिले। जनरल बिपिन रावत ने अपने बचपन की यादें साझा की। ममेरे भाई के परिवार को उपहार दिया। इस दौरान अपने नाना के पैतृक पंचपुरा घर में भी गए। इस दौरान वे राजराजेश्वरी मंदिर पूजा अर्चना करने गए। करीब एक घंटे तक गांव में रहे। गांव में ग्रामीण ने उन्हें पहाड़ी व्यंजन दाल की पकौड़ी और पूरी खिलाई.
पलायन को रोकने की अच्छी पहल
वहीं सेना प्रमुख ने रिटायरमेंट के बाद अपने गांव में ही बसने का ऐलान किया. इसे पलायन पर मार कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. क्योंकि उत्तराखंड में गांव के गांव खाली हो रहे हैं. पलायन को देखते हुए इस स्थिति से निपटने और पलायन को रोकने के लिए एक अच्छी पहल सेना प्रमुख ने की है. खास बात ये है कि सेना की चीफ को रिटायरमेंट के बाद भी खास सुविधाएं दी जाती हैं लेकिन जनरल बिपिन रावत को अपनी पैतृक भूमि देवभूमि से प्यार है औऱ इसलिए उन्होंने रिटायरमेंट के बाद यहीं रहने की इच्छा जताई है बदरी केदार दर्शनों के बाद बिपिन रावत अपने मामा के घर थाती धनारी पहुंचे हैं। वहां उनका फूल मालाओं से स्वागत हुआ।
ननिहाल उत्तरकाशी में औऱ मूल रुप से पौड़ी गढ़वाल के हैं सेना प्रमुख
आपको बता दें कि सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का ननिहाल उत्तरकाशी के थाती गांव में है। पूर्व विधायक रहे ठाकुर किशन सिंह परमार के परिवार से है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर किशन सिंह परमार 60 के दशक में उत्तरकाशी क्षेत्र से विधायक रहे हैं। इससे पहले टिहरी प्रजामंडल में शिक्षा मंत्री रहे। थल सेना प्रमुख के पिता का नाम स्व. लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत, माता का नाम स्व. सुशीला देवी है। सेना प्रमुख का पैतृक गांव पौड़ी जनपद के द्वारिखाल ब्लाक का सैंज गांव है।