अक्सर ये देखा जाता है कि पहाड़ी लोग भीड़-भाड में अपनी बोली-भाषा बोलने में शर्माते हैं जो कि पहा़ड़ी संस्कृति के लिए एक खतरा है. भाषा विलुप्त होती जा रही है कई जगह गढ़वाली भाषा को बढ़ावा देने के लिए कक्षाएं दी जा रही है औऱ पौड़ी में तो छात्र-छात्राओं के लिए गढ़वाली भाषा में किताबें भी छप गई है लेकिन क्या किताब में लिखा हुआ हम अपनी असल जिंदगी में ढाल पाएंगे.