अल्मोड़ा: ओखलियां तो हर गांव में हैं, लेकिन अल्मोड़ा के सुरेग्वेल मुनियाचैरा गांव में मिली ओखली की चर्चा उत्तराखंड के अलावा देश के अनेक पुरातत्वविदों के बीच हो रही है। ये ऐसी ओखली है, जिसका इतिहास 100-200 साल नहीं, बल्कि हजारों साल पुराना बताया जा रहा है। जानकार लोग अब इसकी वास्तविक उम्र और इतिहास खोजने में जुट गए हैं।
अल्मोड़ा में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान जालली-मासी मोटर मार्ग पर सुरेग्वेल मुनियाचैरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्क मेगलिथिक ओखली मिली है। यह ओखली पाली पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को बताती महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मानी जा रही है। दिल्ली विवि के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहन चंद्र तिवारी ने विगत दिवस सुरेग्वेल क्षेत्र में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान मुनिया चैरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्क मेगलिथिक ओखली को खोजा है।
इसके अलावा ग्रामीणों की मानें तो ओखली महाभारत कोल की है। इसे यहां क्यों बनाया गया। इसका क्या महत्व है, ये किसी को पता नहीं है। लेकिन, इस ओखली को लेकर अब इतिहासकारों से लेकर पुरात्तवविद और अन्य जानकारी शोध में जुट गए हैं। उनके लिए यह ओखली किसी बड़े खजाने की तरह है। हालांकि इसके बारे में मशहूर इतिहासकार यशोधर मठपाल पहले ही अपनी शोध पुस्तक में लिख चुके हैं।