डेस्क- जाड़े का सीजन खत्म होने को है लेकिन बादल हैं कि अब तक उत्तराखंड से रूठे हुए हैं। जनवरी आधे से ज्यादा खत्म हो चुका है।
बावजूद इसके सूबे की वादियों ने भरपूर बारिश नहीं देखी। नतीजा ये है कि गिरीराज हिमालय की मोटी बर्फीली स्वेटर झीनी चदरिया बनकर रह गई है।
माना जा रहा है कि अगर बादल यूं ही रूठे रहे तो गर्मियों में पानी के लिए हिमालयी इलाके और तलहटियां त्राहि माम कर बैठेंगी। मौसम का ये मिजाज आने वाले दिनों में पानी के संकट का संकेत दे रहा है। पर्यावरण के जानकारों के माथे पर चिंता की लकीरे हैं। पर्यावरण की कीमत पर तरक्की की इबारत लिखने वाला विकास का मॉडल जीवन को कहां धकेलेगा कहना मुश्किल है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय क्षेत्र में पूरे जाड़े के सीजन में बर्फबारी नहीं होने से गर्मियों में पानी का गंभीर संकट पैदा हो सकता है। बारिश और बर्फबारी नहीं होने से जहां जल स्रोत रिचार्ज नहीं हो पाएंगे वहीं हिमालय में बर्फ कम रहने से नदियों में भी पानी कम हो जाएगा।हाल ये है कि आमतौर पर मई-जून में बर्फ पिघलने पर ओम पर्वत में दिखाई देने वाली ओम की आकृति अभी से उभरने लगी है।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के निदेशक किरीट कुमार का कहना है कि दिसंबर मासांत से लेकर जनवरी तक बर्फबारी होने पर हिमालय में अच्छी बर्फ जमा हो जाती है लेकिन फरवरी और मार्च में बर्फबारी होने पर हिमालय में बर्फ ज्यादा नहीं टिकती है और तामपान बढ़ने से जल्द पिघलने लगती है। उन्होंने कहा कि बारिश-बर्फबारी नहीं होने से जहां फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है वहीं इससे फलों के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा। सेब आदि कुछ फलों को ठंड की अधिक जरूरत होती है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक जाड़े में बारिश नहीं होने का व्यापक असर पड़ेगा। जल स्रोत रिचार्ज नहीं हो पाएंगे और गर्मियों के मौसम में नदियों में भी पानी कम रहेगा क्योंकि हिमालय में जाड़े के सीजन में इकट्ठा होने वाली बर्फ ही गर्मियों में पिघलकर नदियों में पानी के रूप में आती है।
इस बार अब तक हिमालय क्षेत्र में नाममात्र की ही बर्फ गिरी है। बीते कुछ दिनों से धूप आने के बाद बर्फ पिघलने से हिमालय भी रूखा लगने लगा है। इस सीजन में फिलहाल फरवरी तक बारिश की संभावनाएं बनी रहती हैं। अगर फरवरी तक भी अच्छी बारिश हो जाए तो भी थोड़ा राहत मिल जाएगी। अन्यथा हालत काफी बिगड़ सकते हैं। हिमालय में बर्फ नहीं टिकने की स्थिति में ग्लेशियर ही पिघलने लगेंगे। यह स्थिति हिमालय की सेहत के लिए अच्छी नहीं मानी जा सकती।