देहरादून: उत्तराखंड के लिए प्राकृतिक आपदाएं कोई नई बात नहीं है। 2013 में दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा में से एक का गवाह रहा उत्तराखंड अब शायद आपदा, विपदा और विनाश को अपनी नियती मान चुका है। 2013 की वो भयानक विभीषिका उत्तराखंड तो क्या पूरी दुनिया कभी नहीं भूल सकती, जहां हजारों जानें सैलाब में देखते देखते चली गयीं, जान माल की तबाही की वो काली रात आज भी दिलो दिमाग को दहला देती है।
चमोली के रैणी गांव में आयी आपदा का जख्म अभी भरा भी नहीं कि 18 और 19 अक्टूबर को भीषण बारिश एक बार फिर उत्तराखंड पर कहर बन कर टूटी। हालांकि इस बार मौसम विभाग के पूर्वानुमान को देखते हुए सरकारी मशीनरी पहले ही पूरी तरह अलर्ट मोड में आ चुकी थी। केंद्र में मोदी तो राज्य में धामी की अगुवाई में आपदा से निबटने की पुख्ता तैयारियां हो चुकी थीं।
18 और 19 की बारिश किस कदर खतरनाक थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि मौसम विभाग ने इसका पूर्वानुमान लगाते हुए 2013 में आई आपदा से तुलना की थी। सरकार ने इस पूर्वानुमान में झलक रही भयावहता को समझा और देहरादून से दिल्ली तक सरकारें आपदा के नुकसान को कम करने के लिए जुट गईं।
भगवान का शुक्र था कि इस बार सूबे की सत्ता न बहुगुणा के हवाले थी और न त्रिवेंद्र के हाथ में। इस बार कमान युवा उर्जा से लबरेज पुष्कर सिंह धामी के हाथ में थी। धामी ने आपदा को सेवा के अवसर की तरह लिया और पहले ही दिन से मोर्चे पर जुट गए।
आपदा प्रबंधन विभाग के कंट्रोल रूम में खुद बैठकर धामी एक एक घटना पर निगाह बनाए रहे तो अगले दिन खुद ही आपदा प्रभावित इलाकों में पहुंच गए। उत्तराखंड में ऐसी भयावह आपदा के दौरान किसी मुख्यमंत्री को इतनी सक्रियता से हालात संभालते शायद राज्य पहली बार देख रहा था।
चुनौतियों की परवाह न करते हुए धामी दिन रात प्रभावित इलाकों में न सिर्फ पहुंचे बल्कि प्रभावितों तक बेहद तत्परता से राहत भी पहुंचाई। एक तरफ थी कुदरत की चुनौती तो दूसरी ओर सीएम धामी की जिद और कुशल प्रबंधन। नतीजा सबके सामने है। ये सच है कि प्राकृतिक आपदाओं को रोकना संभव नहीं है। लेकिन ये जरूर है कि अगर सरकारी मशीनरी का प्रबंधन पूरी क्षमता और कुशलता के साथ किया जाए तो इससे होने वाले नुकसान को न्यूनतम किया जा सकता है। और शायद सीएम धामी ने यही किया।