ब्यूरो- एक गजल की पक्तियां है शराब चीज ही ऐसी है जो न छोड़ी जाए ये मेरे यार के जैसी है जो न छोड़ी जाए। उत्तरखंड शराब के लिए शराब भी ऐसी ही हो गई है। न छोड़ते बनती है न पकड़ते बनती है। मयकशी करते हैं तो बदनाम होते हैं और मयखाना छोड़ते हैं तो सड़क पर आते हैं।
शायद यही वजह है कि, टीएसआर सरकार की कैबिनेट मे आज कई अहम प्रस्ताव पर सहमति की मुहर लगने के बावजूद शायद शराब का मसला छूट गया । क्योंकि अगर इस मसले पर कुछ होता तो हुजूर कुछ कहते । लेकिन इस पर सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी।
दरअसल आजकल सूबे से शराब एक सुलगता हुआ सवाल हो गया है। पहाड़ हों या मैदान शराब के सावल से झुलसे हुए हैं। राज्य में कई महिलाओं पर शराब विरोधी आंदोलन में शिरकत के चलते मुकदमे हो रखे हैं।
जबकि दूसरी ओर ये हाल है कि शराब और खनन की बैशाखियों पर चलने वाली सरकार के पास माकूल राजस्व नहीं आ पा रहा है। अदालत के फरमान के बाद कई इलाको में शराब की दुकाने बंद हैं। जिनसे सरकार को राजस्व का घाटा हो रहा है। सरकार के सामने एक ओर कुंआ और दूसरी ओर खाई वाली हालत है।
नई आबकारी नीति शराब के सवाल पर सुलगते हुए उत्तराखंड के घावों पर मरहम लगा पाएगी और मुहल्लों मे घुस कर शराब का धंधा कर दुकानों से मन माफिक राजस्व वसूल कर पाएगी इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।
क्योंकि आज की कैबिनेट में शराब के सवाल पर कोई बात हुई या नहीं इसका खुलासा नहीं हुआ है। ऐसे में एक जून को नई आबकारी नीति राज्य में लागू होगी या नहीं, इस पर आज की तरीख में संशय बरकरार है।