ब्यूरो- राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों राष्ट्रीय दलों के प्रदेश अध्यक्षों को बगावत का सामना करना पड़ रहा है। चाहे भाजपा क प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट हों या फिर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय। रानीखेत में अजय भट्ट को उनके खासमखास माने जाने वाले प्रमोद नैनवाल चुनौती दे रहे हैं तो सहसपुर में 2012 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस टिकट पर लड़ चुके आर्येंन्द्र शर्मा।
ऐसे मे तय है कि बगावत की शूल दोनो दिग्गजों के सियासी भविष्य का निर्धारण भी करेगी। गौरतलब है कि अजय भट्ट रानीखेत से जीत कर 2002 और 2012 में पंहुचे और दोनों बार भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। जबकि किशोर भी लगातार दो बार टिहरी से 2002 और 2007 में जीत कर सदन में पहुंचे। 2002 की तिवारी सरकार में किशोर कैबिनेट मंत्री भी बने थे।
2017 के इस चुनाव मे सबसे दिलचस्प बात ये है कि दोनों दलों के अध्यक्ष सुकून में नहीं है। न भट्ट, न उपाध्याय। जीतने के लिए दोनों को लोहे के चने चबाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। किशोर को आलाकमान पहाड़ से उठाकर सहसपुर के मैदान में पटक दिया जहां संगठन के अलावा उनके साथ कोई अपना नहीं है।
उधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को अपने चिरपरिचित प्रतिद्वंदी कांग्रेस उम्मीदवार करन महरा के अलावा बगावत का भी सामना भी करना पड़ रहा है। तय है कि जीत जहां दोनो नेताओं के कद को पार्टी के भीतर और बड़ा कर देगी वहीं हार उन्हें सियासत के नेपथ्य में ही नहीं बल्कि बियाबान मे भी धकेल सकती है। होगा क्या ये जनता तय करेगी।