इस्तीफे के पीछे जितेंद्र त्यागी ने भले व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया हो, मगर माना जा रहा है कि इसकी नींव तभी पड़ गई थी, जब शासन ने वित्तीय व प्रशासनिक अधिकारों की उनकी मांग को नजरअंदाज कर दिया। जितेंद्र त्यागी जब फरवरी 2017 में उत्तराखंड मेट्रो रेल कार्पोरेशन के प्रबंधक बने तो वह जोश से लबरेज थे।
दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन से सेवानिवृत्ति के बाद वह उत्तराखंड को यादगार तोहफा देना चाहते थे, इसकी बड़ी वजह यह भी थी कि वह स्वयं उत्तराखंड के रहने वाले हैं। आते ही उन्होंने परियोजना की डीपीआर बनाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिया था। इसके साथ ही वह अन्य काम भी तेजी से आगे बढ़ाना चाहते थे। इसके लिए वह वित्तीय व प्रशासनिक अधिकारों की मांग कर रहे थे।
उन्होंने तर्क दिया था कि एक्ट में इसका प्रावधान है। इस मांग पर गौर करने के बजाय शासन ने कहा दिया कि प्रकरण को कैबिनेट की बैठक में ले जाया जाएगा। यह काम भी कई महीने अटका रहा। इसके चलते प्रबंध निदेशक जितेंद्र त्यागी अपने कार्यालय में स्टाफ तक भर्ती नहीं कर पाए। उनके कार्यालय में एक पीएस के अलावा कोई अन्य कर्मचारी नजर नहीं आता था।
ऐसे हालात के चलते वह जुलाई से ही इस्तीफे के संकेत दे रहे थे। अब कैबिनेट की बैठक ने कार्पोरेशन बोर्ड को वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार दिए तो वह इस्तीफे का मन बना चुके थे।
हालांकि, अभी वह एक महीने के नोटिस पीरियड में हैं। सरकार व शासन पर है कि वह त्यागी को किस तरह मना पाते हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ तो निश्चित तौर पर देहरादून मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की राह मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि उनके जैसा अनुभवी व्यक्तित्व तलाश पाना राज्य के लिए फिलहाल आसान नहीं।