उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके यूं तो सभी तरह की बुनियादी सहलूयितों से महरूम हैं, जिनमे सड़क,पानी,बिजली,अस्पताल,मास्टर और डॉक्टर प्रमुख हैं। लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत सड़कों की है। माना जाता है कि अगर राज्य के पहाड़ी इलाके सड़कों से वक्त पर जुड़ जाते तो पलायन की समस्या राज्य के लिये लाइलाज न बनती। खैर कहते हैं सुबह का भूला अगर सांझ को घर लौट आये तो उसे भूला नही कहते।
इसलिये मौजूदा सरकार के दावों पर यकीन किया जाये तो कहा जा रहा है कि 2020 तक राज्य के हर गांव तक स़ड़क पहुंच जायेगी। इतना नही, दावा ये भी है कि इस वित्तीय वर्ष के आखिर तक एक हजार नई सड़कों पर काम भी शुरू हो जायेगा। हालांकि अपने इस सपने को पूरा करने के लिये सबे की सरकार को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा क्योंकि खूबसूरत जंगल से आबाद इस राज्य मे फॉरेस्ट क्लीयरेंस और बजट सड़क की राह मे रोड़ा अटकायेंगे। क्योंकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय केंद्र का मसला है और जो सड़क आबादी विहीन गांव की ओर जायेगी उस पर कोई निजी कारोबारी पैसा लगाने के लिये तैयार नही होगा। बहरहाल होगा क्या ये तो आने वाला वक्त बतायेगा। पर सूबे की सरकार का लक्ष्य रोड़ कनैक्टिविटी फॉर ऑल है।