रुद्रप्रयाग- उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों के भीतर दर्द के एक नहीं कई दरिया बह रहे हैं। जो इस दर्द के पानी को अपने हाथों में लेता है उसके आंचल से लेकर भीतर के अहसास तक दर्द से भीग जाते हैं जिले में तैनात सीएमओ डाक्टर सरोज नैथानी की तरह। जबकि जो इसे महसूस नहीं कर पाता वो तैनाती से पहले तबादलों की तिकड़म भिड़ाने में मशगूल हो जाता है।
बहरहाल पहाड़ी गांवों का भूगोल दूर देश के सैलानियों को अपनी ओर तो खींचता है लेकिन सूबे के मैदानी इलाकों में तैनात धरती के भगवान माने जाने वाले डॉक्टरों का रास नहीं आता। जिसका असर ये होता है कि सौंदा गांव की एक मां को अपने 22 साल के बेटे को घर में जंजीर या रस्सी से बांधने के लिए मजबूर होना पड़ता है। मां के हाथ कांपते हैं आंखों के आंसूओं से जमीन गीली हो जाती है लेकिन मां का विवशता देखिए उसे डर है कि अगर वो ऐसा नहीं करेगी तो वो अपने बेटे से हाथ धो बैठेगी। जंगली जानवर उसके बेटे को अपना निवाला बना देंगे।
दरअसल उसके बेटे पंकज को क्वॉड्रिपरीसिस नाम की बीमारी है इसमें पीड़ित के हाथ-पैर नहीं चलते । इसके अलावा मजबूर मां के लाचार बेटे को अफेजिया नाम की बीमारी भी है जिस कारण वह ठीक से बोल भी नहीं पाता है। सेहत के जानकारों की माने तो घर में होने वाले प्रसवों में से कई मासूमों को ऐसी बीमारी हो जाती है।
लिहाजा पंकज की मां सरोज राणा उसे बेड़ियों से जकड़कर रखती है। पंकज के सिर से आठ साल पहले पिता का साया उठ गया है। ऐसे मे बेवा सरोज को मजदूरी कर के अपने लाचार बेटे और अपना पेट पालना पड़ता है। बेटे को विकलांग पेंशन मिलती है और सरोज को विधवा पेंशन। जिले में तैनात सीएमओ डा सरोज नैथानी हर महीने पंकज की मजबूर को 2000 रूपए की मदद करती हैं। लेकिन ये रकम इतनी नहीं है कि सरोज अपने पंकज का इलाज करवा दे।
ऐसे में सरोज देश के पीएम नरेंद्र मोदी से मिलना चाहती है ताकि पीएम मोदी पहाड़ के अंदरूनी हालात से वाकिफ हो सकें। पीड़ित पंकज की विधवा मां सरोज पंकज जैसे बच्चों के हालात पीएम नरेंद्र मोदी को बताना चाहती हैं। सरोज चाहती हैं कि पीएम पहाड़ में उत्तराखंड की उस स्वास्थ्य व्यवस्था से भी रू-ब-रू हो सकें जिसकी वजह से पंकज जैसे बच्चों को बेडियों में जकड़ने के लिए मांओं को अपने कलेज पर पत्थर रखने को मजबूर होना पड़ता है। पंकज की मां कहती हैं कि वो पीएम मोदी से कहना चाहती है कि पहाड़ और पहाड़ियों की सहेत के लिए कुछ किया जाए ताकि उन्हें मैदानों में न भटकना पड़े।