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कोरोना योद्धा की आपबीती : साहब डर तो लगता है, पर करना भी जरूरी है…

Reporter Khabar Uttarakhand
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Breaking uttarakhand newsनई दिल्ली : कोरोना काल में हर कोई खुद को कोरोना से बचाना चाहता है। देश और दुनिया में कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें लोगों ने अपनों का अंतिम संस्कार करना तो दूर शव लेने से तक इंकार कर दिया। कोरोना से मरने वालों के शवों का अंतिम संस्कार ही चुनौती बन गया। लेकिन, एक कोरोना योद्धा ऐसा है, जिसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है और ना उसे इसकी चिंता है।

हर दिन 10 का अंतिम संस्कार
मोहम्मद शमीम पिछले तीन माह से लगातार कोरोना संक्रमण से मरने वालों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। वो हर दिन करीब 10 लोगों का अंतिम संस्कार करते हैं। हैरानी की बात यह है कि जब कोई इनका अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं है, तब शमीम इंसानियत की मिसाल पेश कर रहे हैं। उनको एक शव का अंतिम संस्कार करने के लिए केवन 100 रुपये मिलते हैं। जबकि उनकी जान हर पल जोखिम में रहती है।

पांच एकड़ जमीन
दिल्ली के आईटीओ कब्रिस्तान में पांच एकड़ जमीन भी आरक्षित की गई है, जहां 200 से ज्यादा शव दफनाए जा चुके हैं। नियमानुसार कोविड से जुड़े शवों से परिजनों को दूर रखा जाए, लेकिन अंतिम संस्कार कराने वालों के लिए यह किसी पहाड़ जितनी चुनौती से कम नहीं है।

रोजी-रोटी का दूसरा जरिया नहीं
शमीम बताते हैं कि इसके अलावा रोजी-रोटी का कोई दूसरा जरिया नहीं है। संक्रमण के डर के चलते 16 घंटे तक अपने घर में नहीं घुसते हैं। तीन महीने से उन्होंने अपने बच्चों को गले नहीं लगाया है और न ही उनके साथ खाना खाया। यह सब इसलिए, क्योंकि शमीम हर बार इंसानियत का हवाला देकर अपने काम को एक कर्तव्य के रूप में देखते हैं।

मृतकों के परिजन नहीं जाते कब्रिस्तान
शमीम का कहना है कि काफी शव लावारिस आते हैं, लेकिन कुछ मृतकों के परिजन भी होते हैं तो वह कब्रिस्तान नहीं जाना चाहते। क्योंकि, उन्हें संक्रमण से डर लग सकता है। इसके बाद सभी शवों को सुपुर्द-ए-खाक कराने की जिम्मेदारी शमीम पर ही होती है।

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