देहरादून(दीपिका रावत) : आप अगर पहाड़ी हैं औऱ गांव में आपने शादियां अटेंड की है तो आपने जरुर इस तस्वीर की सच्चाई को और जमीनी हकीकत को, मजे का जरुर लुत्फ उठाया होगा. या हो सकता है आपके संगी साथियों ने भी पहाड़ की शादी अटेंड की होगी. पड़ाड़ी शादी में खासकर गढ़वाल में अक्सर शादी के एक दिन पहले पूरे गांव के लोग एक जुट होकर लड़की या लड़के की शादी में काम करते हैं और हाथ बटाते हैं. शादी के एक दिन पहले पूरे गांव की महिलाओं को न्यौता(निमंत्रण) दिया जाता था वो भी रोटी पकाने आने के लिए. घर घर जाकर कहां जाता था भाऱे शामबक्त रुट्टी पकौणांखण आजियां…मतलब की शाम को रोटी पकाने आजाना. लेकिन अब वो पहाड़ वाले नहीं बल्की दिल्ली वाले हो गए हैं.
गांव के खेतों में या खुले आंगन में बड़े-बड़े पत्थर के चूल्हे बनाए जाते थे
पूरी गांव की औऱतें एकजुट होकर शाम को अपने-अपने घर से चकला-बेलन लेकर रोटी पकाने आती थीं. गांव के खेतों में या खुले आंगन में बड़े-बड़े पत्थर के चूल्हे बनाए जाते थे और पंचायती बर्तनों पर खाना पकाया जाता था. पंचायत के बड़े से तवे पर एक बार में कई रोटियां सेकी जाती थी…काम काफी होता था लेकिन गांव वालों की एकता के सामने ये कुछ नहीं था. लड़के या लड़की(जिसकी शादी हो रही है) उसकी मां को तो पता ही नहीं होता था औऱ खाने की चिंता भी नहीं सताती थी कि खाना बना की नहीं क्योंकि पूरा गांव जो एक था. इसके बाद पूरे गांव के लोग बरतन लेकर खाना लेने आते थे जिसमे उड़द की दाल, भात, मीठा भात, सब्जी दी जाती थी. औऱ साथ ही गांव के लोग पत्तल में नीचे बैठकर खाना खाते थे…तब कोई भेदभाव नहीं होता था..लोग गौ साला के सामने तक बैठे खाना खाते थे.
क्योकि अब वो दिल्ली वाले हो गए हैं
लोगों में एकता थी जो की हर मुसीबत को चुटकियों में खत्म कर देती थी लेकिन अब उत्तराखंड में न तो ऐसी एकता है और न ही लोग अब ज्यादा किसी की शादी में जाकर काम करते हैं. बल्कि अब कोई काम करे भी तो पीछे से आकर उनके परिवार वाले आंख दिखाते हैं और घर बुलाते हैं. जी हां क्योंकि अब तो भेदभाव हो गया है. अमीरी गरीबी हो गई है…जाति-धर्म हो गया है…कूडी़-कोठी हो गई है और बच्चे दिल्ली वाले हो गए हैं. पति को पत्नी पीछे से घुर्रती है..आंखों से टकटकी लगाए देखती है औऱ बुलाकर कहती है कपड़े खराब हो जाएंगे..भुवाल हमण जान भी च(कल हमने जाना भी है). गांव वीरान हो गए हैं औऱ पहाड़ सुनसान हो गए हैं.
काश वो दिन फिर लौट आएं और हम ऐसी ही शादी का मजा हमेशा लें औऱ अपनी संस्कृति को, पड़ाड को, बोली भाषा को कभी न भूले. हमारी आने वाली पीढ़ी उत्तराखंड की हर बात से हर चीज से वाकिफ रहे. जिसके लिए सबसे पहले जरुरत है तो पलायन रोकने की.