लोकसभा चुनाव के परिणामों की तैयारियां जोरों पर हैं। परिणाम कल यानि 23 मई को आने हैं। कौन जीतेगा, कौन हारेगा, ये तो कल तय हो ही जाएगा, लेकिन कुछ बातें हैं, जिनको जानना और जिनका जिक्र करना जरूरी है। नेता टोटके और परिणामों को लेकर कुल देवता और देवी की शरण में भी गए। चुनाव में कई नए-पुराने मिथक और धारणाओं पर भी नेताओं की नजर रहती है। मिथक और धारणाएं नेताओं की जीत की उम्मीदों को भी पंख लगाते हैं। जबकि कुछ को उनके साथ जुड़े मिथक डराते रहते हैं। ऐसा ही मिथक अजय भट्ट के साथ भी जुड़ा हुआ है।
चुनावी समर में कुछ पारिवारिक तो कुछ निजी मिथक और धारणाएं होती हैं। ज्यादातर बार मिथक और धारणाएं सही साबित भी होती हैं। नैनीताल-उधमसिहनगर लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी अजय भट्ट से जुड़ा ऐसा ही एक मिथक है। जिसको लेकर वो चिंतित भी होंगे। हालांकि यह भी तय है कि मिथक टूटते भी हैं और बनते भी रहते हैं। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद हुए चुनावों से एक कड़वा मिथक अजय भट्ट से जुड़ा हुआ है। असल में अब तक के उनके राजनीतिक करियर में अजय भट्ट जब भी जीते हैं, तब उनके दल की सरकार नहीं बनी। जब वो चुनाव हारे हैं, भाजपा की सरकार बनी है।
प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट पर इस समय संगठन के लिहाज से अपनी जीत ही नहीं, बल्कि प्रदेश की सभी पांचों सीटें जीतने का दबाव भी है। ऐसे कड़वे मिथक को ध्यान में रखकर अजय भट्ट नैनीताल सीट से इस बार सबसे पहले अपनी जीत को पक्की करने के लिए दिन-रात कार्यकर्ताओं संग मेहनत में लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की उम्मीदों पर भट्ट खरा उतरना चाहते हैं। सवाल यह है कि क्या अजय भट्ट की जीत के साथ देश में फिर से मोदी सरकार बनेगी या नहीं। उसका कारण यह है कि अजय भट्ट जब जीते तब विपक्षी दल की सरकार बनी और जब हारे तब अपनी सरकार बनी।
अजय भट्ट 1980 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। 1985 में बीजेपी अल्मोड़ा जिला कार्यसमिति सदस्य, फिर अल्मोड़ा लोकसभा के चुनाव संयोजक और 1996 में रानीखेत से बीजेपी ने इनको विधानसभा का टिकट दिया और ये जीतकर लखनऊ विधानसभा पहुंचे। 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड गठन के बाद बीजेपी की अंतरिम सरकार में ये कैबिनेट मंत्री बने। 2002 में अजय भट्ट चुनाव जीतकर आए, प्रदेश में कांग्रेस के एनडी तिवारी की सरकार बनी। फिर 2007 में भट्ट चुनाव हारे और प्रदेश में बीजेपी सरकार बनी। हालांकि अजय भट्ट की सक्रियता को देखते हुए निशंक सरकार में इन्हें एनआरएचएम का उपाध्यक्ष बनाया गया। 2012 के विधानसभा चुनाव में अजय भट्ट फिर से रानीखेत से चुनकर आये पर बीजेपी सरकार को जाना पड़ा। इसके बाद पार्टी ने उनको नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी। दो बार बीजेपी प्रदेश महामंत्री रहे अजय भट्ट को नेता प्रतिपक्ष रहते बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान तीरथ रावत के हटने के बाद दी गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां पूरे प्रदेश में बीजेपी की आंधी चली और 70 में से 57 सीटें बीजेपी के खाते में गई। लेकिन, रानीखेत से अजय भट्ट फिर से चुनाव हार गए। कहा जाता है कि कार्यकर्ताओं को खुश रखने वाले अजय भट्ट यदि 2017 में रानीखेत जीत जाते तो वो शायद मुख्यमंत्री बन जाते। लेकिन, वो चुनाव हार गए और सीएम की कुर्सी पूर्व में दो विधानसभा चुनाव हारे, डोईवाला से विधायक बने त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मिली। इस चुनावी हार की अजय भट्ट को बड़ी कसक जरूर रही होगी।
अजय भट्ट उत्तर प्रदेश विधानसभा में लोक लेखा समिति, सीपीए सदस्य के अलावा विशेषाधिकार समिति के सभापति भी रहे। इसके अलावा सरकारी श्रमिक संघ अध्य्क्ष, ड्रग फैक्ट्री अध्य्क्ष पदों पर भी काबिज रहे। फिलहाल नैनीताल के रण में उनके सामने कांग्रेस के दिग्गज्ज नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरिश रावत मैदान में हैं। दोनों नेता अल्मोड़ा जिले के निवासी हैं। दोनों नेताओं पर प्रदेश को जीतने की जिम्मेदारी है। जहां हरीश रावत इस जीत के साथ अपने कद को ऊंचा करने की कोशिश में लगे हैं। वहीं, अजय भट्ट भी इस जीत के साथ मोदी सरकार बनाने की जुगत में लगे हैं। अगर वो जीत जाते हैं, तो उनके साथ जुड़ा पुराना मिथक भी टूट जाएगा।
अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के एक बयान के चलते उनको दो पैक वाले पंडित जी भी कहा जाता है। फ़िलहाल सबके जेहन में एक ही सवाल है कि क्या अजय भट्ट नैनीताल जीत पायेंगे? यदि अजय भट्ट जीते तो क्या केंद्र में पुनः बीजेपी सरकार बन पायेगी? क्या होगा अजय जीतेंगे या सरकार बनेगी या फिर दोनों ही बातें होंगी? क्या अजय भट्ट 2019 के लोकसभा संग्राम में एक नया इतिहास लिखेंगे? इन सब बातों का जवाब 23 मई को सभी को मिल जायेगा। फिलहाल नैनीताल में अजय भट्ट और हरीश रावत के बीच कड़ा चुनावी मुकाबला नजर आ रहा है। हरदा अपने अंदाज से लोगों को दिल जीत रहे हैं, तो अजय भट्ट भी अपने भोलेपन से लोगों को अपना बनाने की कोशिशों में जुटे हैं।