उत्तराखंड की ट्रेजरी में अघोषित आपातकाल की स्थिती आ गई है। हालात ये हैं कि मार्च खत्म होने को है और बिलों का भुगतान बेहद मद्धम गति से हो रहा है। बताया जा रहा है कि कछुआ गति से चलने की वजह ‘ऊपर’ से आया दबाव है। इस दबाव के चलते सूबे में वित्तीय संकट की आहट सुनाई दे रही है।
दरअसल ये मार्च का महीना है और ऐसे में तमाम विभागों के बकाया बिल भुगतान के लिए उत्तराखंड की ट्रेजरी में पहुंच रहें हैं। आमतौर पर इन दिनों में ट्रेजरी में काम आम दिनों की तुलना में दोगुना से भी अधिक हो जाता है। ट्रेजरी के कर्मचारी भी इन दिनों में काम की रफ्तार बढ़ा देते हैं। उन्हें इस बात का पता होता है कि 31 मार्च से पहले बिलों का भुगतान न हुआ तो बिल पेंडिंग हो जाते हैं। यही वजह है कि 31 मार्च तक हर बिल निपटा देने का दबाव ट्रेजरी के कर्मचारियों पर रहता है।
लेकिन इस बार ट्रेजरी का नजारा बदला हुआ है। ट्रेजरी अघोषित आर्थिक आपातकाल के हाल से गुजर रहा है। बिलों के भुगतान की गति धीमी छोड़िए लगभग बंद सी है। खबर है कि इस बार ‘उपर’ से मौखिक निर्देश जारी हुए हैं और हर भुगतान की फाइल सीधे ‘उपर’ तक जा रही है। वहीं से निर्देश मिलने पर भुगतान पर मुहर लग रही है। कुछ खास फाइलों पर ही भुगतान की संस्तुती मिल रही है।
वहीं इस बार ‘उपर’ से हर संस्तुति लेने का सिस्टम क्यों बनाया गया इस बात की जानकारी भी नहीं मिल पा रही है। सरकार के सूत्रों की माने तो बजट की कोई कमी नहीं है और विभागों के पास पर्याप्त बजट दिया गया है। फिर ऐसे में सरकार के दावों और ट्रेजरी के भुगतान के बीच ‘तीसरा कौन’ है और क्यों है जो काम की रफ्तार को थाम रहा है?