राज्य पुलिस मुख्यालय, जिला एसपी कार्यालयों व बटालियनों में हर रैंक के पुलिस अधिकारी व कर्मचारी अब सप्ताह में केवल सोमवार को ही वर्दी पहनेंगे। उन्हें शुक्रवार को इसे नहीं पहनना पड़ेगा। मामला हिमाचल पुलिस का है जहां पुलिस खाकी पहनने से गुरेज करने लगी है। इस सिलसिले में डीजीपी एसआर मरडी ने पूर्व डीजीपी सोमेश गोयल के आदेश को पलट दिया है। गोयल ने सप्ताह में सबके लिए दो बार वर्दी पहनने के आदेश जारी किए थे। तब सोमवार व शुक्रवार को वर्दी पहनना जरूरी था लेकिन मरडी को यह रास नहीं आया। राज्य पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) में उनके नए आदेशों का पालन शुरू हो गया है। हालांकि बटालियनों तक ये आदेश नहीं पहुंच पाए हैं।
पीएचक्यू में कांस्टेबल से लेकर डीजीपी रैंक के कर्मी और अधिकारी सोमवार को ही वर्दी पहन रहे हैं। इसी तरह जिलों के एसपी कार्यालयों, उपमंडल पुलिस अधिकारियों के कार्यालयों व छह बटालियनों में भी इन आदेशों को लागू करना होगा। केवल सीआइडी व विजिलेंस में इससे छूट रहेगी।
जूते और बेल्ट में भी हुआ था बदलाव
2010 में जूते और बेल्ट में भी बदलाव हुआ। पुलिस कर्मियों को काले जूते और काली बेल्ट पसंद नहीं आई। पुलिस कल्याण संगठन ने 2016 में सीएम से मुलाकात की। उन्होंने एएसआइ से लेकर इंस्पेक्टर तक जूते और बेल्ट का रंग लाल करने की गुहार लगाई। इसे मान लिया गया। तब से यही रंग लागू है।
टोपी पहनने के दोहरे मानदंड
कई बटालियनों में पुलिस जवान नीली टोपी पहन रहे हैं। कुछ बटालियनों में टोपी पर पाबंदी है। ऐसे में टोपी के दोहरे मानदंड अपनाए जा रहे हैं। जहां पाबंदी है, वहां खाकी टोपी पहनी जा रही है। अगर नीली टोपी पहनी तो अनुशासनात्मक कारवाई करने के निर्देश हैं। मिसाल के तौर पर प्रथम आइआरबी वनगढ़ में नीली टोपी पहनने पर रोक है पर जिन जगह नीली टोपी ही पहनी जा रही है, वहां पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। सवाल यह है कि दो तरह के प्रावधान कैसे हो सकते हैं।
टोपी से अफसरों को परेशानी
बताते हैं कि पुलिस कर्मियों की नीली टोपी से सरकार को नहीं अफसरों को दिक्कत है। डीएसपी से लेकर डीजीपी तक के अधिकारी की टोपी का रंग नीला है, लिहाजा उनमें से कई अधिकारी नहीं चाहते कि इससे नीचे के अधिकारी भी उनके जैसे रंग की टोपी पहनें। इसके लिए राज्य पुलिस मुख्यालय में कमेटी भी गठित की गई थी।
अगर राज्य पुलिस ने खाकी के टेंडर लगाए होंगे तो उसका पैसा संगठन देगा। चाहे वह लाखों में क्यों न हों। पुलिस को नीली टोपी चाहिए। अब भी उन्होंने अपने जेब से पैसे खरीद कर इसे पहना है। इस मसले को लेकर सीएम से मुलाकात की गई थी। उम्मीद है कि सरकार जल्द नई अधिसूचना जारी करेगी।
बदली थी खाकी वर्दी
पुलिस की पहचान खाकी के नाम है। ऐसा अंग्रेजों के जमाने के चला आ रहा है। जनता के जहन में छवि बदलने के लिए प्रदेश सरकार ने बड़ा फैसला लिया था। 2010 में कास्टेबल से लेकर डीजीपी तक वर्दी की नीली कर दी थी। इसमें टोपी भी शामिल थी। पुलिस कल्याण संगठन ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने वर्दी के रंग पर आपत्ति जताई। कोर्ट से संगठन के हक में फैसला आया। इस कारण सरकार को पुराना पैट्रन बहाल करना पड़ा। 2016 में फिर से खाकी टोपी के आदेश जारी हुए, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।