देहरादून(हिमांशु चौहान)- उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग एक बार फिर बेकाबू हो चली है. आग से जंगलो और पर्यावरण को तो नुक्सान हो ही रहा है साथ ही बड़े पैमाने पर जंगली जानवर आग की चपेट में आकर बेमौत मारे जा रहे हैं. ये आग एक बार फिर जंगलों से सटे गाँव और बस्तियों तक आ पहुंची है जिसने सरकार की नींद उड़ा दी है , हालांकि सरकार स्थिति के नियंत्रण में होने का दावा कर रही है लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है. सूबे में उपलब्ध तमाम संसाधन सरकार ने आग के मोर्चे पर झोंक दिए हैं लेकिन आग है की सिमटने की जगह फैलती ही जा रही है ।
घरों तक पहुंची आग…..
बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब उत्तराखंड में आग को बुझाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य की पूरी मशीनरी जुटी थी. पहाड़ों पर लगी आग बुझाने के लिए पहली बार वायुसेना को आगे आना पड़ा था लेकिन तीन साल बाद फिर से उत्तराखंड के पहाड़ो में आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है टिहरी-चम्बा, खिर्सू, चकराता, उत्तरकाशी, श्रीनगर और हरीद्वार के जंगल तीन दिनों से जल रहे है. लेकिन सरकार के पास जो संसाधन है वो आग तक पहुँच ही नही पा रहे है और गाँव वालों को अपने आप आग भुजाने में जुटना पढ़ रहा है. अभी भी लगभग 20 से ज्यादा जगहों पर आग ने अपना डेरा जंगलों में डाला हुआ है.
केंद्र सरकार से लगायी जायेगी मदद की गुहार
जंगलो में लगी आग ने अब जंगलो से सटे गांव व शहरों का रुख कर लिया है जिससे लोगो की चिंताएं बढ़ गयी है. सबसे ज्यादा गाँव वालों की दिकत आग के धुएं से हो रही है जंहा घरों के पास तक आग पहुँच गयी है अभी सरकार पारम्परिक तरीकों से आग बुझाने को प्राथमिकता दे रही है यदि हालात फिर भी काबू में नहीं आये तो केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगायी जायेगी.
741 घटनाएं हुई है और इन घटनाओं में 1213 हैक्टेयर भूमि जल कर राख हुई
सरकारी आंकडो के अनुसार उत्तराखंड मे फायर सीजन में 741 घटनाएं हुई है. जबकि इस घटनाओं में 1213 हैक्टेयर भूमि जल कर राख हुई है. पीसीसीपी नोडल अधिकारी बीपी गुप्ता की माने तो इस अग्नि कांड में 21 लाख 12 हजार 373 रुपये का नुकसान हुआ है.
आग की अधिक घटनाएं पौड़ी और हरिद्वार जिले में
आग की घटना जंहा सबसे ज्यादा हुई है वो पौड़ी के श्रीनगर और हरीद्वार के जंगल उसमे शामिल है. मुख्य वन संरक्षक बी पी गुप्ता ने बताया कि आग पर कंट्रोल के लिए 40 कंट्रोल रूम के साथ-साथ 1437 क्रू स्टेशन और 174 वाच टावर लगाए गए हैं कंट्रोल रूम में 5:00 से 7:00 वन कर्मियों को लगाया गया है. इसके साथ ही हर जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया जो मौके पर वनाग्नि को कंट्रोल कर सकेगा इसके लिए वन कर्मियों की सभी छुट्टियां निरस्त कर दी गई है. उनका कहना है कि हम लोग वनाग्नि के संभावनाओं से पहले ही गांव के लोगों को जागरूकता अभियान के तहत वनाग्नि रोकने के लिए उपाय बताते रहते हैं वनाग्नि के लिए लोगों को भी आगे आना चाहिए।