उत्तराखंड में फील्ड मार्शल नाम से मशहूर दिवाकर भट्ट अब हमारे बीच नहीं रहे। एक ऐसा शख्स जिसे 19 साल की उम्र में जेल जाना पड़ा। बदरीनाथ से दिल्ली तक पैदल चले और उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी।
19 साल की उम्र में जाना पड़ा था जेल
दशकों से उत्तराखंड के हक-हकूकों के लिए लड़ने वाली ये आवाज आज हमेशा के लिए थम गई है। टिहरी के बडियारगढ में जन्मे दिवाकर भट्ट ने कल यानी 25 नवंबर 2025 को हरिद्वार में अंतिम सांस ली। दिवाकर भट्ट आंदोलनों की धरती में ही जन्में थे तो बचपन से उनका खून भी बगावती ही रहा। जब पूरा इलाका आजादी की आग में जल रहा था। सिर्फ 19 साल की उम्र में दिवाकर भट्ट आंदोलनों में शामिल होने लगे। 1968 में जब ऋषिबल्लभ सुंदरियाल के नेतृत्व में उत्तराखंड राज्य की मांग को पहली बार दिल्ली की सड़कों पर लाया गया तब दिवाकर भट्ट उस विशाल रैली का हिस्सा रहे।
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शिक्षा और संस्कृति क्षेत्र में भी दिवाकर भट्ट दे चुके हैं योगदान
1972 में त्रेपन सिंह नेगी की रैली में भी दिवाकर भट्ट शामिल हुए। 1977 में दिवाकर भट्ट ‘उत्तराखंड युवा मोर्चा’ के अध्यक्ष बन गए। 1978 में जब त्रेपन सिंह नेगी और प्रताप सिंह के नेतृत्व में दिल्ली के बोट क्लब पर रैली हुई तो वो बदरीनाथ से दिल्ली तक पैदल चलकर गए। जिसके बाद बांकी आंदोलनकारियों के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में बंद कर दिया, जिसके बाद भी दिवाकर भट्ट झुके नहीं। दिवाकर भट्ट ने राजनीतिक आंदोलन करने के साथ-साथ शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में भी काफी काम किया था।
दिवाकर भट्ट ने ITI की पढ़ाई के बाद हरिद्वार के बीएचईएल में कर्मचारी नेता बन गए। 1970 में उन्होंने ‘तरुण हिमालय’ नाम की संस्था बनाई, जिससे उन्होंने रामलीला जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू किए और एक स्कूल भी खोला ताकि पहाड़ के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। 1971 में दिवाकर गढ़वाल विश्वविद्यालय के आंदोलन में कूद पड़े। उस समय बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने थे। जिस वजह से शांति भंग करने के जुर्म में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।
1979 में UKD से जुड़े थे दिवाकर भट्ट
फिर आया 1979 एक ऐसा साल जिसने उत्तराखंड के संघर्ष की दिशा पूरी तरह बदल दी। 1979 में दिवाकर भट्ट ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ (UKD) के संस्थापक उपाध्यक्ष बन गए। ये पार्टी राज्य बनाने के संघर्ष का नया आधार बन गई। यूकेडी बनने के बाद उन्होंने राज्य स्थापना की लड़ाई को एक नई दिशा दी। गढ़वाल-कुमाऊं मंडलों का घेराव हो, 1987 की दिल्ली की ऐतिहासिक रैली हो या फिर समय-समय पर हुए ‘उत्तराखंड बंद’ दिवाकर भट्ट इन सभी में हमेशा सबसे आगे रहे।
आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने के चलते मिली थी फील्ड मार्शल की उपाधि
1994 में जब उत्तराखंड राज्य आंदोलन की आग भड़की तो दिवाकर भट्ट आंदोलन के सबसे बड़े चेहरों में से एक थे। 1994 के बाद जब आंदोलन थोड़ा धीमा पड़ा, तब भी Diwakar Bhatt ने हार नहीं मानी। नवंबर 1995 में भट्ट ने श्रीयंत्र टापू पर आमरण अनशन किया। जिसके बाद दिसंबर 1995 में उन्होंने खैट पर्वत पर भी अनशन किया। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने और उनके तिखे तेवरों को देखते हुए उक्रांद सम्मेलन में गांधीवादी नेता इंद्रमणि बडोनी ने उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी थी।
दिवाकर भट्ट का राजनीतिक सफर
संघर्षों के अलावा, दिवाकर भट्ट ने उत्तराखंड के लोगों का दिल भी कई बार जीता था। जिसके चलते उन्हें राजनीति में भी अपनी धाक जमाई। दिवाकर भट्ट 1982 से 1996 तक 3 बार कीर्तिनगर के ब्लाक प्रमुख रहे। उन्होंने जितने भी विधानसभा चुनाव लड़े उन्हें हमेशा भारी वोट से जीत हासिल की। 2007 में दिवाकर भट्ट पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और उन्होंने राजस्व मंत्री का पदभार संभाला।
2012 में भाजपा के टिकट पर लड़ा था चुनाव
साल 2012 में दिवाकर भट्ट ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन इस बार जनता ने उनका साथ नहीं दिया। इसके बाद दिवाकर भाजपा छोड़ फिर से उक्रांद में शामिल हो गए। 1999 और 2017 में वो उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष रहे। आपको बता दें की भू कानून को सख्त बनाने का श्रेय भी Diwakar Bhatt को ही जाता है। दिवाकर भट्ट ने अपनी पूरी जिंदगी एक सेनापति की तरह बिना रुके, बिना डरे अंत तक उत्तराखंड के लिए लड़े जाने वाले आंदोलनों की कमान संभाली थी।



