देहरादून- सत्ता मिली और हनक न दिखाई तो क्या खाक सत्ता मिली, लगता है नई भाजपा इसी तर्ज पर चल रही है। अनुशासन की दुहाई देने वाली भाजपा अमित शाह के दौर में अब सार्वजनिक अनुशासन की परवाह नहीं करती। पिछले विधानसभा चुनाव में सियासी शुचिता को त्याग चुकी भाजपा अब पुराने दौर की कांग्रेस हो गई है।
पुराने बुजर्ग कह रहे हैं ट्रैफिक काूनन की धज्जियां जैसे आज देहरादून की सड़कों पर उड़ी कभी इसी तरह संजय गांधी के दौर में भी उड़ती थी। जब कांग्रेस में संजय गांधी की चलती थी उस दौर में भी ट्रैफिक कानून सड़को पर घुटने के बल बैठा सिर झुकाए मिलता था।
आज भी वैसा ही देखने को मिला, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह देहरादून आए तो उनके स्वागत के लिए बजते हूटरों ने ध्वनि प्रदूषण के मानकों को शर्म के मारे मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया। कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर जिस हिसाब से बुलट दौड़ाई उससे कहीं नहीं दिखायी दिया कि इस शहर में कोई ट्रैफिक पुलिस भी काम करती है।
देहरादून में जो सीपीयू पुलिस मामूली बात पर आम दुपहिया वाहन को नियम कानून का पाठ पढ़ाकर जुर्माना झटक लेती है उस ट्रैफिक पुलिस ने अमित शाह के स्वागत समारोह पर नजरें इनायत करनी मुनासिब नहीं समझी। भाजपा के बुलेट वाले युवा कार्यकर्ता यातायात नियमों का माखौल उड़ाते रहे और उत्तराखंड की सीपीयू पुलिस न जाने कौन सी गली मे आम आदमी का चालन करने में मशगूल रही।
आलम ये था कि भाजपा के युवा कार्यकर्ता जोश में बिना हैल्मेट के बुलट दौड़ा रहे थे। ट्रैफिक के काएदे कानून कहां डर कर छिपे थे उस आम जनता को समझ में नहीं आ रहा था जिसे पुलिस ने रोक रखा था। कहीं से भी नहीं लग रहा था कि राज्य में जनता के लिए जनता ने सरकार चुनी है।
हसीन सब्जबागों को वोट देकर हासिल करने की हसरत पालने वाला आम आदमी परेशान था जबकि सत्ता के घोड़े में सवार भाजपा कार्यकर्ताओं की हनक जोश के सातवें आसमान पर थी।