नैनीताल- किसी ने ठीक ही कहा है न्याय में देर हो सकती है मगर अंधेर नही। सूबे के उन शिक्षा आचार्यों को भी उस वक्त यही लगा होगा जब नैनीताल उच्च न्यायालय ने उनके हक में सूबे की सरकार को फरमान सुनाते हुए फौरन निर्णय लेने को कहा होगा।
दरअसल उच्य न्यायालय ने स्नातक की योग्यता वाले शिक्षा आचार्यों को शिक्षा मित्र पद पर समायोजित करने का निर्देश देते हुए राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है। गुरूवार का दिन उन शिक्षा आचार्यों के लिए शुभ रहा जो पूर्व में शिक्षा मित्र पर समायोजित न हो पाए और इंसाफ की दरख्वास्त लिए उच्च न्यायालय की शरण में चले गए।
हालांकि सरकार ने उच्च न्यायालय में एक विशेष याचिका दर्ज की थी जिस पर सुनवाई करते हुए वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने शिक्षा आचार्यों को शिक्षा मित्र पर समायोजित करने का फैसला दिया।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 19 नवंबर 2010 को आदेश जारी कर बंद हो गए या उच्चीकृत हो गए विद्यालयों में तैनात 1107 स्नातक योग्यता रखने वाले शिक्षा आचार्यों को शिक्षा मित्र के पद पर समायोजित करने का फैसला लिया था। उसके तहत ऐसे शिक्षा आचार्यों को शिक्षा मित्र पर नियुक्त करने से पहले उन्हें दो साल का प्रशिक्षण देने और उसके बाद नियमानुसार सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त करने का निर्णय लिया था। सरकार के शासनादेश से उस वक्त 1107 शिक्षा आचार्यों में से 770 आचार्यों का समायोजन हो गया लेकिन बाकि छूट गए।
छूटे शिक्षा आचार्य न्याय के लिए अदालत चले गए जहां से उन्हें इंसाफ मिला लेकिन सरकार ने फिर एक विशेष याचिका दाखिल कर दी। जिसमे तर्क दिया गया कि शिक्षा आचार्य अधिनियम 2009 के लागू होने के चलते सरकार शिक्षा आचार्यों को शिक्षा मित्र नहीं बना सकती। लेकिन उच्च न्यायालय में एक बार फिर से शिक्षा आचार्यों के हक में फैसला आया है। हाईकोर्ट ने सरकार की विशेष याचिका खारिज़ कर दी। तय है कि अब दो सौ से अधिक शिक्षा आचार्यों के शिक्षा मित्र बनने का रास्ता साफ हो गया है। अगर सरकार ने फिर से शराब और खनन जैसी चाल न चली तो !