कोटद्वार : बिच्छू घास जिसे पहाड़ में कंडाली कहा जाता है, इसकी एक झसाक से पूरा शरीर कांप उठता है…अगर आप बचपन से गांव जाते-आते हो तो आपको भी जरुर रास्ते में बिच्छू घास लगी होगी या मां, दादा-दादी ने शरारत करने पर कंडाली की टहनी से मारा होता। बिच्छू घास का हल्का सा टच पूरे शरीर में करंट पैदा कर देते हैं। वहीं कंडाली अब बाजारों में बिकने के लिए आ गई है। जी हां सभी जानते हैं कि कंडाली की सब्जी भी पहाड़ी व्यजनों में प्रसिद्ध है। कंडाली को उबाल कर उसके कांटे नष्ट किए जाते हैं और फिर छोंका लगाया जाता है। वहीं कंडाली से अब पैसे कमाए जा रहे हैं। कंडाली रोजगार का साधन बन गया है। कंडाली के औषधीय पौधा है और गुणकारी है।
कोटद्वार के बाजार में इतने रुपये किलो बिकने लगी कंडाली
मिली जानकारी के अनुसार कंडाली कोटद्वार के बाजार में बेचने के लिए लाई जा रही है। सब्जी विक्रेता 120 रुपये प्रति किलो के भाव से कंडाली बेच रहे हैं। महंगे होने के बावजूद लोग इसे खूब खरीद रहे हैं। कहा जाता है कि कंडाली में रोग प्रतिरोधक गुण पाए जाते हैं। इसलिए कोरोना काल में लोग इसे खूब खरीद रहे हैं। खबर है कि दुगड्डा के अंतर्गत आने वाले जमरगड्डी क्षेत्र के रहने वाले एक काश्तकार ने कंडाली बेचना शुरु किया। जब वो दुकान पर कंडाली लेकर पहुंचा तो लोगों ने 120 रुपये किलों के भाव से तुरंत खरीद लिया।
लोगों ने बताया स्वागत योग्य पहल
कंडाली खरीदने वाले लोगों का कहना है कि ये स्वागत योग्य पहल है। इससे काश्तकारों की आर्थिक स्थिति मजबूत तो होगी ही साथ ही उत्तराखंड के पौधे और उत्तराखंड के व्यंजन को अलग पहचान मिलेगी। काश्तकारों ने उत्तराखंड को नई पहचान और प्रसिद्धि दिलाने के लिए नई पहल की शुरुआत की है। सरकार को भी इस ओऱ ध्यान देना चाहिए जिससे युवाओं को रोजगार भी मिले और राज्य की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो।
ये-ये है पोषत तत्व
कंडाली में आयरन भरपूर मात्रा में होता है। इसके अलावा कंडाली में विटामिन ए, सी, पोटैशियम, मैग्निज और कैल्शियम भी भरपूर पाया जाता है। इसके रेशों का इस्तेमाल चप्पल, जैकेट और कंबल बनाने में हो रहा है।