धनौल्टी, संवाददाता। अलग राज्य की लड़ाई आंदोलनकारियों ने जिस मकसद से लड़ी थी वो मकसद 16 साल बाद भी सीलके से पूरा नहीं हुआ है। पहाड़ों में अस्पताल और स्कूलों की हालात देखकर तो यूं महसूस होता है कि शायद निर्वाचित सरकारें महान शहीदों के बलिदान का मोल समझने में नाकाम साबित हो रही है। इस बात की तस्दीक करती हैं पहाड़ो के अस्पतालों की माली हालत। देहरादून से कुछ किलोमीटर दूर धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के थत्य़ूड़ में मौजूद सरकारी अस्पताल पर नजर डाली जाए तो असलियत डरा रही है। सरकार की दमदार पीपीपी मोड की कोशिश यहां कोमा में जा चुकी है। आलम ये है कि पीपीपी मोड़ में राजभ्रा मेडिकेयर के हाथों में सौंपे गए इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अब सिर्फ 2 कर्मचारी ही अपनी सेवा दे रहे हैं। उसकी वजह है पिछले छह महीने से कर्मचारियों को वेतन न मिलना। राजभ्रा मेडिकेयर ने अस्पताल को अपनी सेवा देने के लिए ले तो लिया लेकिन उसे अब रैफेर सेंटर बनाकर रख दिया है। बताया जा रहा है कि थत्यूड़ की जनता की लाइफ लाइन का दावा करने वाले इस सरकारी अस्पताल में पहले 11 कर्मचारी तैनात थे। लेकिन लगातार 6 महिने तक तय पगार ने मिलने के चलते कर्मचारियों ने पीपीपी मोड़ पर अस्पताल को चलाने वाली राजभ्रा मेडिकेयर का साथ मजबूरी के चलते छोड़ दिया। आज हालत ये है कि यहां सिर्फ 2 ही कर्मचारी अस्पताल में ड्यूटी दे रहे हैं नतीजतन मरीजों को देहरादून और मसूरी रेफर करना पड़ रहा है। अस्पताल प्रबन्धन का कहना है कि सरकार ने 6 महीने की तन्ख्वाह का बिल अभी तक पास नहीं किया ऐसे में अस्पताल को अपनी सेवा दे रहे डॉक्टर और दूसरे सहकर्मी भला कब तक अस्पताल में टिकते। ऐसे में सवाल उठता है आखिर तमाम तरह के दावे और घोषणा करने वाली सरकार पहाड़ की जनता के जीवन के साथ क्यों खेल रही है। सूबे में सेहत का सवाल यक्ष प्रश्न न बना रहे इसके लिए सरकार पक्के इरादे के साथ कोई ठोस उपाय क्यों नहीं करती। साहब थत्यूड़ की जनता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही है।