देहरादून: जी हां। देहरादून में एक ऐसा केस सामने आया है, जिसमें पुलिस कर्मियों, जो सगे भाई भी हैं ने एक युवक को चरस के झूठे केस में फंसा दिया था। 11 साल बाद इस मामले की पुलिस की ओर से बुनी फर्जी कहानी से पूरी तरह पर्दा उठ गया। विशेष एनडीपीएस जज सुबीर कुमार की कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है, जो झूठी कहानी बुनने वाले पुलिस वालों को सबक सिखाएगा। जिसे चरस में जेल भेजा, उसे कोर्ट ने बरी कर दिया है। झूठी कहानी बुनने वाले दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ दंडात्मक और अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश दिए।
घटना 15 फरवरी 2009 में हुई बताई गई। पुलिस की कहानी के अनुसार तत्कालीन एसओ क्लेमेंटटाउन कांस्टेबल हसन और अन्य सिपाहियों के साथ गश्त पर थे। दोपहर करीब दो बजे उन्होंने आशिमा विहार के पास एक कार को सड़क पर तिरछे खड़े देखा। उसमें से एक युवक बैग लेकर उतर रहा था। संदिग्ध जानकर पुलिस ने उसे रोका तो वह नहीं रुका। इस पर उसे भागकर पकड़ा गया। अनवर निवासी श्यामीवाला मंडावली बिजनौर नाम के युवक से बरामद बैग में एक पॉलीथिन की थैली में काले रंग का बत्तीनुमा पदार्थ था, जिसे सूंघ और तोलकर पता चला कि यह 1.40 किलो चरस है।
amarujala.com की खबर के अनुसार फॉरेंसिक रिपोर्ट आने पर पुलिस ने 22 जून 2009 को अनवर के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। अभियोजन पक्ष ने इस मुकदमे में कुल 10 गवाह प्रस्तुत किए। अनवर ने खुद को बेकसूर बताते हुए बयान दिए कि कांस्टेबल अरशद और हसन ने उसे कोटावाली नदी से जबरन कार सहित उठाया था। आठ गवाह प्रस्तुत किए। पता चला कि अनवर के परिजनों ने उसी दिन मंडावली जिला बिजनौर थाने में रिपोर्ट भी दर्ज कराई।
मुकदमे के ट्रायल में अभियोजन पक्ष पुलिस की कहानी को सिद्ध नहीं कर पाया। जबकि, बचाव पक्ष की कहानी से यह सिद्ध हुआ कि हसन और अरशद दोनों सगे भाई हैं। वे दोनों अनवर के विरोधियों से मिले और उसका कोटावाली नदी के पास से अपहरण कर देहरादून क्लेमेंटटाउन थाना क्षेत्र में गिरफ्तारी दिखा दी। न्यायालय ने अनवर को बरी करते हुए पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।