डेस्क- यूं तो सनातन धर्म में विवाह के दौरान अग्नि को साक्षी मानकर 7 फेरे लेने का विधान है। मगर आप ये जानकर अचरज में पड़ जाएंगे कि राजस्थान में श्रीमाली समाज का विवाह 8 फेरे लेने पर ही पूरा होता है। दरअसल ये समाज द्वापर युग की कृष्ण-रूकमणी विवाह की परम्परा को ही आत्मसात किए हुए है। बतया जाता है कि रूकमणी से विवाह की ख्वाहिश शिशुपाल भी रखता था। जब कृष्ण-रुकमणी का विवाह हो रहा था तो शिशुपाल भी विवाह में विघ्न डालने विवाह मंडप में पहुंच गया। इस वक्त भगवान कृष्ण चौथा फेरा ले चुके थे,लेकिन शिशुपाल के आगमन के चलते भगवान को शिशुपाल से युद्ध करना पड़ा था। युद्ध करते हुए रात बीत गई तब युद्ध में विजयी कृष्ण ने सुबह के वक्त रुकमणी को गोद में लेकर चार फेरे लिए। चार फेरे रात को और चार फेरे सुबह, कुल 8 फेरे कृष्ण-रुकमणी के विवाह में लिए गए। श्रीमाली समाज भी उसी परम्परा को निभा रहे हैं। श्रीमाली समाज में जब विवाह होता है तो दुल्हा दुल्हन 8 फेरे लेते हैं जिसमें 4 फेरे अग्नि को साक्षी मानकर रात में लिए जाते हैं जबकि 4 फेरे चबरक रस्म के दौरान सुबह लिए जाते हैं। चबरक की रस्म भी बड़ी दिलचस्प है, इसमे दूल्हा दुल्हन को गोद में उठाकर 4 फेरे लेता है। चबरक में कन्या पक्ष की सुहागिनें वर को धी-शक्कर युक्त चावल खाने की मनुहार करती है। बाद में दुल्हन और दूल्हा एक दूसरे को भी इन चावलों को खाने का निवेदन करते हैं इसके बाद वर दुल्हन को गोद मे उठाकर फेरे लेता है। श्रीमाली समाज की मान्यता है कि ऐसा करने से दम्पति के भावी जीवन में कोई कष्ट नहीं होता।