देहरादून- पहाड़ पर सेवा देने में आनाकानी बरतने वाले धरती के भगवानों को सरकार की चाल से दिन में तारे नजर आने वाले हैं। पहाड़ों में सेहत का इतज़ाम दुरूस्त करने की कवायद में जुटी सरकार ने मैदानों में जमे डाक्टरों का तोड़ निकाल लिया है। बजट सत्र के दौरान सदन में सीएम ने सदन को जो जानकारी दी है उसके माएन निकाले जाएं तो तय है कि राज्य के मैदानी अस्पतालों मे तैनात डाक्टरों की आनाकानी उन पर भारी पड़ सकती है।
दरअसल सूबे के सीएम त्रिवेंद्र रावत ने सदन में जिक्र किया कि उड़ीसा में तैनात सरकारी डाक्टरों को पांचवे वेतन आयोग के मुताबिक ही पगार मिल रही है। जबकि तमिलनाडू में सरकारी अस्पताल कम हैं जबकि डाक्टर ज्यादा।
ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार दूसरे राज्यों को डाक्टरों को पहाड़ की सेवा का मौका दे सकती है। दूसरे राज्यों के डाक्टर राज्य में मिल रही ऊंची पगार का सरकारी ऑफर कबूल सकते हैं। वहीं सरकार ने सेना से रिटायर्ड डाक्टरोंं को भी सेवा में लेने की बात कही है। सेना को दुर्गम इलाकों में काम करने का अनुभव होता है।
ऐसे तय है कि अगर सब कुछ सरकार की मंशा के मुताबिक चलता रहा तो डाक्टरो की रहा देखते पहाड़ के सूने पड़े अस्पतालों मे रौनक आ जाएगी। पहाड़ में ही सेहत के मुक्कमल इंतजाम होने से बीमार मरीज मैदान नहीं उतरेंगे। इससे जहां मैदान के सरकारी अस्पतालों का बोझ कम होगा । वहीं मैदान के निजी अस्पतालों की बिक्री भी प्रभावित होगी। उम्मीद है कि इस सरकारी दांव से जल्दी ही चिकित्सा विभाग के सरकारी और निजी सितारों की हेकड़ी जमी पर होंगी।