देहरादून- पिछले सत्रह सालों में उत्तराखंड की सरकारी चिकित्सा सुविधाएं बीमार ही रही। मैदानी इलाकों को छोड़ दिया जाए तो पहाड़ों के सरकारी अस्पतालों में न दवा मिली न डाक्टर।
मामूली पेट दर्द के लिए भी डंडी-कंडियों के सहारे पहाड़ी मरीजों को मैदानी इलाकों की ओर रुख करना पड़ा। लेकिन अब एक साल बाद धीरे-धीरे हालात बदलने लगे हैं। सूबे की कोमा में पड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था होश में आने लगी है। सब कुछ सीएम त्रिवेंद्र रावत की सोच के मुताबिक हुआ तो मुमकिन है कि आने वाले वक्त में मरीजों को मोटा किराया-भाड़ा खर्च कर गांव से बाजार ने आने पड़े।
ये बात इसलिए कही जा रही है कि राज्य के पहाड़ी इलाकों में 600 से ज्यादा चिकित्सकों को तैनाती दी गई है। जबकि 481 डॉक्टरों का परीक्षा परिणाम घोषित करने के साथ ही उन्हें तैनाती देने के आदेश भी दिए गए हैं।
वहीं रियायती दर पर पहाड़ों में सेवा देने की शर्त पर राज्य से MBBS कर फरार हो चुके डाक्टरों पर भी सख्ती बरती गई। नतीजा ये हुआ कि करार कर फरार हो चुके डाक्टरों में से 249 डॉक्टर पहाड़ी जिलों के अस्पतालों में सेवा देने को तैयार हो गए हैं।
राज्य के दूरस्थ इलाकों के वासिदों को भी समय पर इजाज मिल सके इसके लिए सरकार ने डेढ सौ से ज्यादा दंत चिकित्सकों को भी अस्पतालों में तैनात किया है। वहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक दर्जन से ज्यादा डॉक्टरों की भी भर्ती की गई है।
सूबे के गांवों में बदहाल चिकित्सा व्यवस्था पटरी पर आ सके इसके लिए अब सरकार गांव की पहली स्वास्थ्य किरण एएनएम सेंटर को भी अपग्रेड करने की योजना बना चुकी है। जिसके तहत राज्य के 330 एएनएम उपकेंद्रो को वेलनेस सेंटर बनाने की कवायद में जुट गई है। बेशक अभी 46 एएनएम उप केंद्र को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के रूप मे विकसित किया जा रहा है । वही साल 2018-19 के लिए 330 उपकेंद्रों को अपग्रेड करने का लक्ष्य तय कर लिया गया है।
यहां पर शिक्षित परिचारिकाओं को 6माह का ब्रिज कोर्स करवा कर सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। ताकि ब्रिज कोर्स से प्रशिक्षित परिचारिकाएं इन अपग्रेड सेंटर्स में मरीजों की बीमारियां पहचान सकें और उसे सही सलाह दे सके। वहीं अगर मरीज को नई तकनीक टेलीमेडिसन के जरिए बड़े अस्पतालों से बेहतर इलाज दिलवा सकें।