अक्सर आपने अपने बड़े-बुजुर्गों को ये कहते देखा होगा कि घर से बाहर जाते समय किसी को पीछे से टोकना या ये नहीं पूछना चाहिए कि कहां जा रहे हैं? युवा पीढ़ी इन बातों को नजर अंदाज करती है और हंसकर बातों को टाल देती है.युवा पीढ़ी को लगता है की क्या बेकार की बातें हैं. लेकिन हमारे पूर्वज इन बातों का अनुभव किए होंगे तभी हम इसका अनुकरण कर रहे हैं. पूर्वजों के समय से चला आ रहा है कि घर से बाहर जाते समय टोकना शुभ नहीं माना जाता. आखिर ऐसा क्यों? जब हम किसी काम से घर से बाहर जाते हैं तो उस पल हमारा दिमाग पूरी तरह से उस काम को पूरा करने के बारे में सोचता है. हमारा दिमाग उसी दिशा में आगे बढ़ने लगता है. भले ही हम दूसरे मुद्दों पर बात करते हैं, नाश्ता करते हैं, लेकिन दिमाग कहीं एक जगह टिका होता है. एक ऐसा जोन होता है वो जहाँ दिमाग अलर्ट पॉइंट पर होता है.
बाहर निकलते समय जब हम किसी को टोक देते हैं, तो उसका दिमाग पूरी तरह से असामान्य हो जाता है. जिसके कारण कई लोगों को बहुत तेज़ गुस्सा आता है. अचानक से पीछे मुड़ते ही शरीर की दशा बदल जाती है. जो गति हमारा दिमाग उस काम के लिए लगा रहा था अब वो गति शरीर को पीछे मुड़ने और उस सवाल का जवाब देने में लगाना पड़ता है, जिसके बारे में दिमाग तैयार नहीं था.
एक बार दिमाग के डिस्टर्ब होने से उस काम की सफलता नहीं मिलती. कई मामले में लोगों का एक्सीडेंट हो जाता है, तो कई मामले में लोग उस काम को उस दिन नहीं कर पाते. इसका एकमात्र कारण होता है की दिमाग को उसकी गति और लक्ष्य से रोकना.यही कारण धीरे धीरे एक मान्यता में बदल गई. अनुभव के आधार पर लोगों ने ये महसूस किया कि ऐसा करने पर काम सफल नहीं होता. कुछ न कुछ रुकावट हो ही जाती है, इसलिए लोगों ने इसे एक मान्यता बना ली कि बाहर जाते समय किसी को नहीं टोकना चाहिए. इस तरह से घर से बाहर जाते समय टोकना शुभ नहीं मन जाता – अब से अप भी इस तरह का काम न करें. हो सके तो पहले ही पूछ लें कि कहाँ जा रहे हैं. क्या काम से? कब आएँगे. जाते हुए कभी न पूछें.