नारायण दत्त तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था। तब न उत्तर प्रदेश का गठन भी नहीं हुआ था। भारत का ये हिस्सा 1937 के बाद से यूनाइटेड प्रोविंस के तौर पर जाना गया और आजादी के बाद संविधान लागू होने पर इसे उत्तर प्रदेश का नाम मिला। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। जाहिर है तब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रही होगी। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। नारायण दत्त तिवारी शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई। अपने पिता के तबादले की वजह से उन्हें एक से दूसरे शहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की। अपने पिता की तरह ही वे भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए।
जन्म : 18 अक्तूबर 1925, नैनीताल
1947 में चुने गए छात्र यूनियन के अध्यक्ष
1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी। आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया।साल 1963 से शुरू हुआ कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ताकांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई। 431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे। कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली। 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था।
1976 में बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था। 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने। केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है। 1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई। आखिरकार कांग्रेस के भीतर पीवी नरसिंह राव के नाम पर मुहर लग गई। बाद में तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए लेकिन यहां उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा।