देहरादून : पूर्व सीएम हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर बड़ा बयान लिखा है। सभी इस बात से वाकिफ हैं कि बीते दिनों धारचूला से कांग्रेस विधायक हरीश धामी ने सोशल मीडिया पर कार्यकारिणी पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया और साथ ही इससे पहले पार्टी द्वारा हरीश रावत की अनदेखी पर सवाल खड़े करते हुए पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ने की बात कही थी जिसके बाद धमासान मचा.
इसके बाद इंदिरा और हरीश धामी आमने-सामने आ गए। औऱ इंदिरा ने हरीश धामी पर वार करते हुए कहा कि कांग्रेस से बाहर जाकर आखिर किसका भला हुआ है चैंपियन को ही देख लीजिए। वहीं अब इस पर हरीश रावत ने चुप्पी तोड़ी और फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी औऱ कइय़ों को जवाब दिया है।
हरीश रावत की पोस्ट
हरीश रावत ने कहा कि एक बड़ा सवाल उछाला जा रहा है, श्री हरीश धामी का नाम किसने दिया, हाॅ नाम मैंने दिया, दर्जनों और नाम भी दिये। श्री हरीश धामी स्वयं दो बार व एक बार मुझे विधानसभा का चुनाव जिता चुके हैं, स्वयं जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्य रहे हैं और उस क्षेत्र में जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत, ब्लाॅक प्रमुख के चुनाव में पार्टी को महत्वपूर्ण उपलब्धियां दिलवा चुके हैं, सीमान्त क्षेत्र में कांग्रेस के स्तम्भ हैं। मैंने महासचिव पद के लिए उनका नाम दिया। ऐसे नामों को जिन्हें मैंने, अन्य दो दर्जन नामों के साथ महासचिव पद के लिये दिया, वहां पार्टी ने उन्हें सचिव पद पर नियुक्त कर दिया, ऐसे छः लोग हैं।
काश सूची जारी करने से पहले धामी, गुलजार आदि से बात कर ली जाती-हरदा
आगे हरीश रावत ने लिखा कि मुझे खुशी है, राज्य में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हरीश धामी जी की प्रशंसा में बहुत कुछ कहा है, उनको उचित पद नहीं दिया गया, इस तथ्य को स्वीकार किया है और कहा है, यह जिम्मेदारी नाम देने वाले व्यक्ति की है। काश सूची जारी करने से पहले इस तथ्य को ध्यान में रखकर श्री धामी, गुलजार आदि से बात कर ली जाती। मैं भी कहीं अदृश्य नहीं था, मुझे सूचित कर लिया जाता, मैं लिस्ट में सुधार हेतु सक्षम अथाॅरिटी से बात कर लेता। इतना सब कुछ कहने, सुनने की आवश्यकता नहीं पड़ती। श्री धामी, पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, वरिष्ठतम लोगों को उनकी स्वभाविक प्रतिक्रिया पर सार्वजनिक टिप्पणी करने से पहले सोचना चाहिये था। पद सब चाहते हैं, यदि पद नहीं दे सकते हैं तो सम्मान, तो हमें कार्यकर्ताओं को देना पड़ेगा। हममें से बहुत सारे लोग चुनाव नहीं जीत पाते हैं, यह कहना कि, जो ग्राम प्रधान का पद नहीं जीत सकते, उन्हें पद मांगने का अधिकार नहीं है, एक अलग बात है। ऐसे बयान, रात-दिन पार्टी के लिए परिश्रम कर रहे कार्यकर्ताओं का अपमान है।