संवाददाता- शायद चुनावी घड़ी में भी कांग्रेस एक जुट नहीं हो पाई है। संगठन के मुखिया और सरकार प्रमुख के रिश्तों में अब तक तल्खी बरकरार है। विश्वस्त सूत्रों की माने तो दिल्ली में आला नेताओं के सामने दोनों मुखियाओं के बीच जमकर तू-तू- मै-मै हुई। जिसकी वजह पार्टी दावेदारों के नाम, उनकी सीटों के चयन और पीडीएफ को लेकर दोनों प्रमुखों के वैचारिक मतभेद प्रमुख रहे। सूत्रों की माने तो दोनों बेहिचक एक दूसरे से जुबानी तौर पर भिड़ गए। न राम ने लक्ष्मण का परहेज किया न लक्ष्मण ने राम का लिहाज।
गौरतलब है कि सरकार प्रमुख चुनावी घड़ी में भी पीडीएफ को लेकर सॉफ्ट कार्नर रखे हुए हैं जबकि संगठन प्रमुख को पीडीएफ फूटी आंख भी नहीं सुहाता। संगठन प्रमुख सियासत में कोई दोस्त और कोई दुश्मन नहीं होता का सिंद्धांत मानते हैं जबकि सरकार के मुखिया की राजपुतानी सोच है कि प्राण जाए पर वचन न जाए।
खबर है कि दिल्ली में दोनो नेता इन्ही कुछ मुद्दों पर आपस में भिड़ बैठे। खबर ये भी है कि हरीश रावत भी इस बार हरिद्वार की किसी सामान्य सीट से चुनावी ताल ठोकना चाहते हैं ताकि हरिद्वार ग्रामीण पर दावा करने वाली अनुपमा रावत को कुछ मदद मिल सके। उधर खबर है कि संगठन प्रमुख चाहते हैं कि हरीश रावत चुनाव न लड़े बल्कि पूरे राज्य में प्रचार की कमान संभाले और पार्टी के 70 के 70 उम्मीदवारों की जीत मे मदद करें। इसके अलावा किशोर नही चाहते कि हरीश रावत पीडीएफ के प्रति चुनावी घड़ी में पुत्र मोह जैसा बर्ताव करें।