आशीष तिवारी। जीआरडी वर्ल्ड पब्लिक स्कूल में छात्रा के साथ हुए गैंगरेप की घटना ने पूरे राज्य की मशीनरी को गहरा सबक दिया है। सबक कुछ दिनों पहले एनआईवीएच से भी मिला था लेकिन राज्य सरकार समझ नहीं पाई। अब उम्मीद की जा सकती है कि कम से कम जीआरडी वर्ल्ड पब्लिक स्कूल में हुई घटना से राज्य सरकार सबक लेगी।
उत्तराखंड के बोर्डिंग स्कूल हमेशा से ही पूरे देश के नागरिकों के लिए अन्य राज्यों के ऐसे ही स्कूलों से अधिक महत्वपूर्ण रहें हैं। खासतौर पर देहरादून और नैनीताल के आसपास के बोर्डिंग स्कूलों पर लोग भरोसा करते हैं। ये भरोसा दो तरह का होता है। एक तो लोगों को इस बात का भरोसा होता है कि इन बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ाई का स्तर अन्य स्कूलों की तुलना में बेहतर होगा। वहीं दूसरा भरोसा बच्चे के व्यक्तिगत जीवन को लेकर होता है। इन बोर्डिंग स्कूलों में बच्चों को भेजने वाले अभिभावक इस बात की तसल्ली रखते हैं कि उनका बच्चा बोर्डिंग स्कूल में हर तरह से सुरक्षित रहेगा।
जीआरडी स्कूल में जो हुआ वो पूरे शिक्षा जगत के लिए शर्मनाक है। स्कूल की एक बच्ची के साथ स्कूल में ही उसके सहपाठी गैंगरेप करते हैं और उसे गर्भवती कर देते हैं। इस घटना के बाद बच्ची इतनी सहम जाती है कि अपने साथ हुई घटना का जिक्र भी किसी से नहीं कर पाती। उल्टे जिस प्रबंधन पर इस बच्ची को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी थी वो ही उस बच्ची को डराता और धमकाता रहा।
सबक तो स्कूलों के लिए भी है
ऐसे हालात शिक्षा जगत से जुड़े लोगों के लिए भी सबक है और राज्य सरकार के लिए भी। जिन बोर्डिंग स्कूलों ने अभिभावकों का विश्वास वर्षों में कमाया है उस विश्वास को गैरजिम्मेदार बोर्डिंग स्कूल गंवा देंगे। ऐसे में बोर्डिंग स्कूल चलाने वालों को भी कोई व्यवस्था कर अपनी निगरानी करनी चाहिए। फिर राज्य सरकारों के पास भी ऐसे बोर्डिंग स्कूलों की निगरानी के लिए कोई मशीनरी नहीं है। हालांकि कानून व्यवस्था राज्य के जिम्मे है लेकिन एनआईवीएच से लेकर जीआरडी तक स्कूलों के भीतर ही मासूम बच्चियों की चीखें दबीं रह जाती हैं और कानून के रखवालों को भनक तक नहीं लगती। राज्य सरकार ने अगर एनआईवीएच के समय ही राज्य भर के बोर्डिंग स्कूलों में निरीक्षण के लिए टीमें बनाई होती तो शायद जीआरडी की घटना रोकी जा सकती थी। क्योंकि दोनों ही जगहों पर एक सबसे बड़ी समस्या जो निकलकर सामने आई वो हो उचित स्तर पर शिकायत न कर पाने की बच्चों की बेबसी।
सरकार की बेबसी कब तक?
हैरानी इस बात की है कि बोर्डिंग स्कूलों के प्रबंधन के सामने राज्य सरकार बिल्कुल निरीह नजर आती है। कई स्कूल तो अपने कैंपस में सरकारी कर्मचारियों के प्रवेश तक को रोक देते हैं फिर निरीक्षण की बात तो दूर है। लिहाजा अब ऐसे में जरूरी है कि उत्तराखंड सरकार राज्य के हर बोर्डिंग स्कूल में नियमित निरीक्षण के लिए नियम बनाए। बच्चों से उनकी शिकायतें सुनने के लिए व्यवस्था की जाए। बच्चों को गहरे जख्मों से बचाने के लिए सरकार को ये सबक सीखने ही होंगे।