देहरादून(हिमांशु चौहान) बड़ा अफसोस होता है ये सुनकर…कहीं कई विभाग के लोग आए दिन धरना दे रहे, कहीं प्रदर्शन कर रहे तो कही भूख हड़ताल..और उनकी मांग मानी भी जा रही है. लकिन आज तक सरकार ने उन लोगों पर ऐसा एक्शन नहीं लिया…क्या पुलिस विभाग के सिपाहियों का हक नहीं है कि उनको भी उनका हक मिले. क्या उनका हक नहीं है अपनी मांगे रखने का..मिशन आक्रोश के बाद अब मिशन महाव्रत ने राज्य पुलिस की चिंता बढ़ा दी है। दो दिन बाद तय मिशन महाव्रत से पहले पुलिस ने सोशल मीडिया के जरिये बगावत पर उतरे दो सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया है। पुलिस मुख्यालय ने सभी जिलों के प्रभारियों की बैठक लेकर अनुशासन बनाए रखने का सकरुलर जारी कर दिया है। एलआईयू को पूरे मामले पर नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं।
सिपाहियों ने दी 6जनवरी से मिशन महाव्रत की चेतावनी
पुलिस के सिपाहियों की समस्याओं से जुड़ा गुमनाम पत्र सितंबर और नवंबर माह में मुख्यमंत्री के नाम भेजा गया। इस पत्र में सिपाहियों ने छह जनवरी से मिशन महाव्रत की चेतावनी दी थी। पुलिस मुख्यालय समेत एलआईयू इसे लेकर राज्यभर में पुलिस कर्मियों की गतिविधियों पर पहले से नजर रखे हुई थी।
क्या थी गलती सिपाहियों की
कुछ दिन पहले चमोली जिले में सिपाहियों ने मिशन महाव्रत नाम से व्हाट्सएप ग्रुप बनाते हुए आंदोलन को हवा देने की कोशिशें कीं। मगर इसकी रिपोर्ट चमोली की एलआईयू ने तत्काल पुलिस मुख्यालय और एसपी को सौंपी। इसी रिपोर्ट के चलते एडीजी अपराध एवं कानून व्यवस्था अशोक कुमार ने सभी जिला प्रभारियों की बैठक लेते हुए सतर्क रहने को कहा। साथ ही सिपाहियों को हिदायत दी कि अनुशासन तोड़ने पर किसी को बख्शा नहीं जाएगा। एडीजी ने कहा कि चमोली के दोनों सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया है। कुछ और को चिह्न्ति किया जा रहा है।
ढाई साल पहले दो हुए थे बर्खास्त
16 अगस्त 2015 को मिशन आक्रोश के नाम से आंदोलन चलाया गया था। उस दौरान कुछ सिपाहियों ने काली पट्टी बांधी, पुलिस लाइन की मेस में खाने से इन्कार समेत अन्य कदम उठाए थे। तब 22 अगस्त को डीजीपी को स्थिति संभालनी पड़ी थी। बाद में 26 अगस्त को दो सिपाही बर्खास्त कर गिरफ्तार किए गए। जबकि तीन सस्पेंड किए गए थे। उसके बाद सिपाहियों की काफी मांगें हल भी हुईं।
गुमनाम पत्र में ये मांगें
1.ग्रेड वेतनमान और भत्ते बढ़ाए जाएं
2.राजपत्रित अवकाश के बदले मानदेय मिले।
3.ट्रेनिंग के दौरान का पूर्ण वेतन दिया जाए
4.अवकाश के बदले नकदीकरण की सुविधा दी जाए।
5.सिविल और सशस्त्र पुलिस को भी विशेष भत्ता दिए जाए।
6.पौष्टिक आहार भत्ता बढ़ाया जाए, समेत 14 सूत्री मांग पत्र दिया गया है।
7.ब्रिफिंग के दौरान सिपाहियों को नीचे बैठाए जाने में जताई आपत्ति
- आवास की सुविधा सहित कई मांगे है जो रखी गई है,
यह बड़ा सवाल है कि पूरे राज्य में कई विभाग के लोग अपनी मांगों को मनवाने के लिए आए दिन धरना देते हैं और आए हड़ताल पर बैठ जाते हैं लेकिन ये कदम उन लोगों पर और उन प्रदर्शनकारियों के लिए नहीं उठाया गया. लेकिन सिपाहियों के अपने हक के लिए आवाज उठाने पर झट से उनको सस्पेंड कर दिया गया…क्या पुलिस के सिपाहियों की यहीं गलती थी की उन्होंने औरों की तरह अपनी मांगे रखी…क्या उनकी गलती यही थी कि उन्होंने अपना हक मांगा. सवाल यह है कि उनका हक नहीं है अपनी मांगे बताने का?क्या उनका हक नहीं है की उनको उनका हक मिले? क्या वह अपनी मांगे नहीं रख सकते?
ये बात तो अॉफिस में बैठे बड़े-बड़े अधिकारियों को सोचनी चाहिए. उनको उन सिपाहियों के दर्द को जानने की कोशिश करनी चाहिए जो दिन रात बंदूक लेकर सर्द रातों में ड्यूटी कर रहे हैं. अधिकरतर सिपाही ही हैं जो ड्यूटी पर मजबूती से तैनात रहते हैं. चाहे वो ट्रेफिक व्यवस्था हो या वीआईपी ड्यूटी, चौक-चौराहे पर ड्यूटी हो या वाहन पार्किंग में में अधिकतर सिपाहियों को ही देखा जाता है तो ऐसे में उनकी सुननी चाहिए.