धनोल्टी (सुनील सजवाण)- करहाते पहाड़ो की पीड़ाओं की चीख देहरादून तक नहीं पहुंच पा रही हैं। फोन करना पड़ रहा है तब जाकर सरकारी सिस्टम को होश आ रहा है।
पांच घरों में मातम का दिया जालने के बाद स्वास्थ्य महकमें ने गांव का दौरा किया और गांव में दवा बांटी। इससे घटना से पता चल जाता है कि डबल इंजन की सरकार में भी पहाड़ के गांव सरकारी मशीनरी के लिए ‘अछूत’ हैं। खास कर सेहत जैसे गंभीर मसले पर। सेहत का सवाल पहाड़ों में पहाड़ जैसा भारी हो गया है।
जी हां! धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के घियाकोटी ग्रामसभा में डायरिया जैसी बीमारी का प्रकोप फैला हुआ है। उल्टी-दस्त ने एक बच्चे समेत पांच लोगों की जान ले ली है। सुरसा की तरह मुंह फैलाती बीमारी को देखकर ग्रामीणों ने जब तहसील प्रशासन को सूचना दी।तब जाकर पहाड़ों के लिए कुंभकर्णी नींद में सोए स्वास्थ्य महकमे को जागना पड़ा। तहसील प्रशासन के साथ स्वास्थ्य महकमे की एक टीम ने गांव का दौरा किया और मुआयना करते हुए पीड़ित परिवारों को दवा बांटी।
लेकिन क्या ये शर्मनाक बात नहीं है कि जिन पहाड़ों में पटरी से उतर चुके सेहत, तालीम, रोजगार और संस्कृति बचाने के सवाल को लेकर राज्य निर्माण की लड़ाई छेड़ी गई थी, राज्य बनने के बाद वो सवाल वहीं हैं सिवाय इसके कि 71 लोगों को रोजगार मिला है। जिन्होंने पटवारी रिटायर होना था वो एसडीएम तक पहुंच रहे हैं। जबकि बदहाल गांवो की तस्वीर सहूलियतों के आभाव में पलायन से और बदरंग हो गई है। राज्य दुर्गम-सुगम में बंट गया है, सरकारी सिस्टम राज्य को कागज़ों में दुर्गम और सुगम बना रहा है। जब राज्य दुर्गम था तभी तो अलग उत्तराखंड की मांग की गई थी वरना क्या जरूरत थी लंबी लड़ाई लड़ने की।
ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि, आखिर पहाड़ों में सेहत का सवाल कब तक सरकारों के लिए यक्ष प्रश्न बनता रहेगा। आखिर कब तक सरकारी सिस्टम मर्सिया सुनने के बाद होश संभालने का आदी बना रहेगा! जबकि राज्य के मुख्यमंत्री खुद स्वास्थ्य महकमे की जिम्मेदारी उठा रहे हैं और राज्य को बने पूरे सोलह साल हो चुके हैं।