तो क्या नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में महागठबंधन के प्रत्याशी और बीएसएफ के पूर्व सैनिक तेजबहादुर यादव का लोकसभा चुनावों के लिए नामांकन जान बूझ कर खारिज कराया गया था। क्या इस काम के लिए चुनाव आयोग के जरिए तैनात ऑब्जर्वर ने जानबूझकर तेजबहादुर यादव को नोटिस भेजे थे। ये सवाल खड़े हुए एक ताजा स्टिंग ऑपरेशन के बाद। एबीपी न्यूज के जरिए किए गए इस स्टिंग ऑपरेशन में वाराणसी के डीएम और रिटर्निंग ऑफिसर सुरेंद्र सिंह और वहां तैनात चुनाव आयोग के ऑब्जर्वर के प्रवीण को दिखाया गया है। इस स्टिंग में इसके साथ ही लखनऊ में बैठे राज्य के उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी इंदू भूषण वर्मा को भी दिखाया गया है।
एबीपी न्यूज के इस स्टिंग में कैद हुए चुनाव आयोग के ऑब्जर्वर के. प्रवीण बता रहें हैं कि कैसे उन्होंने बार बार तेज बहादुर यादव को नोटिस भेजी। जन प्रतिनिधि अधिनियम के तहत जब पहले नियम 9 के तहत तेज बहादुर को नोटिस भेजी गई तो तेज बहादुर ने नोटिस का जवाब दे दिया। इसके बाद तेज बहादुर को जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 33 के सब आर्टिकल 3 के तहत फिर नोटिस भेजी गई। तेज बहादुर का दावा है कि शाम छह बजे मिली इस नोटिस के जवाब में एक क्लीयरेंस की जरूरत थी जो दिल्ली चुनाव आयोग से मिलती।
तेज बहादुर की माने तो शाम छह बजे मिली नोटिस के बदले क्लीयरेंस लेटर जमा करने के लिए सुबह 11 बजे तक का समय दिया गया। वाराणसी से दिल्ली पहुंचना, क्लीयरेंस लेटर लेना और उसे लेकर वापस लेकर वाराणसी पहुंचना संभव नहीं था। तेजबहादुर का आरोप है कि दिल्ली में मौजूद उनके वकील नितिन मिश्रा तत्काल दिल्ली स्थित चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे लेकिन उन्हें चुनाव आयोग के दफ्तर में घुसने ही नहीं दिया गया। रात भर नितिन मिश्रा दफ्तर के बाहर रहे, सुबह भी उन्हें काफी देर तक घुसने की इजाजत नहीं मिली। इस स्टिंग में तेज बहादुर का आरोप है कि बीजेपी के कुछ नेताओं के सुबह आयोग पहुंचने के बाद उनके वकील को आयोग में घुसने दिया गया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और इसी आधार पर तेज बहादुर का नामांकन खारिज कर दिया गया।
हालांकि इसी स्टिंग में उत्तर प्रदेश के डीप्टी सीईओ को ये कहते हुए भी दिखाया गया है कि ऑब्जर्वर का काम सिर्फ ऑब्जर्व करना है पर्चा खारिज करना नहीं।
खबरउत्तराखंड.कॉम इस स्टिंग ऑपरेशन की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।