देहरादून– जो कहीं नहीं होता वो उत्तराखंड के पॉवर ट्रासमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड में हो जाता है। अधिकारियों का आपसी कॉपरेशन इतना उम्दा है कि कितने बड़ा से बड़ा घपला हो जाए और मामला उजागर हो जाए या फिर पीएम दफ्तर से ही एक्शन लेने का फरमान आ जाए तो भी आरोपी अधिकारी पर गाज तो क्या कोई जनाब का एक बाल तक नहीं उखा़ड़ सकता।
जी हां यकीन मानिए ये सब उत्तराखंड के पिटकुल में होता आया है और अब भी कारपोरेशन में को-ऑपरेशन का बचाओ-बचाओं खेल जारी है।
दरअसल राज्य के विकास के लिए एडीबी ने अपनी ऐसी मदद की झोली खोली जिसमें 90 फीसदी अनुदान था। इस श्रेणी का एक काम जिसमें काशीपुर से श्रीनगर तक 400 केवी की बिजली लाइन बिछाने का काम पिटकुल को करना था। करोड़ी की लागत से होने वाले इस भारी-भरकम काम के लिए पहले भौतिक सर्वे होना था और उसकी रिपोर्ट तैयार होनी थी। जिस पर पिटकुल को काम करना था।
ऐसे में पिटकुल के अधिकारियों ने सर्वे से ही खेल खेलना शुरू कर दिया। पिटकुल के अधिकारी ने सर्वे का काम ज्योति स्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया। खबरों की मानी जाए तो इस सर्वे कंपनी को सर्वेक्षण का काम दिलाने में पिटकुल के तत्काली अधीक्षण अभियंता विकास शर्मा ने अहम किरदार अदा किया।
बताया जा रहा है कि सर्वे कंपनी को सिर्फ सर्वे रिपोर्ट तैयार करनी थी लाइन बिछानी नहीं थी लिहाजा ज्योति स्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड से भारी भरकम कमीशन मांग गया। हालांकि कंपनी से जितनी डिमांड की गई कंपनी उसे देने को तैयार नहीं थी लेकिन मन मसोस कर कमीशन देने पर राजी हो गई। लेकिन कंपनी बेहद चालक निकली बताया जा रहा है कि कंपनी ने वास्तविक सर्वे के बजाय गूगल मैप से सर्वे रिपोर्ट तैयार कर पिटकुल को सौंप दी। पिटकुल के साहब विकास शर्मा जी ने भी कंपनी के सर्वे को ओके कर दिया खबर है कि पिटकुल की परंपराओं के विपरीत कंपनी को प्रोविजनल सार्टिफिकेट जारी कर दिया।
लेकिन जब ज्योति स्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के दिए नक्श के मुताबिक पिटकुल ने श्रीनगर से काशीपुर तक 400 केवी की लाइन बिछाने पर काम शुरू किया तो पता चला कि लाइन के बीच कहीं कार्बेट नेशनल पार्क आ रहा है तो कहीं नदी, नाले आ रहे हैं तो कहीं घने जंगल। यानि जिन रास्तों पर एनजीटी पिटकुल को कटघरे में खड़ा कर दे वहां शर्मा साहब की करीबी कंपनी ने लाइन बिछाने का फर्जी सर्वे कर दिया। जिसकी एवज में उसे एक करोड़ 65 लाख का भुगतान भी किया गया।
उधर मामले ने तूल पकड़ लिया तो आनन-फानन में कंपनी से 34 लाख की रिकवरी कर ली गई और उसे काली सूची में डाल दिया गया। हालांकि ज्योति स्ट्रक्चर कंपनी इस कार्यवाही के बाद एक करोड़ 30 लाख से ज्यादा की रकम फिर भी डकार गई। लेकिन जब मामला खुल गया था तो कुछ न कुछ करना ही था। जांच हुई और पिटकुल की विभागीय जांच में निदेशक मानव संसाधन ने विकास शर्मा को दोषी करार दे दिया। उनके खिलाफ सरकारी धन के गबन और FRI की संस्तुति कर दी।
लेकिन गजब देखिए आरोपी शर्मा साहब का बचाने के लिए कमीशन डकारने वाले पिटकुल के अधिकारियों के सिंडीकेट ने विकास शर्मा को बचाने के लिए खेल खेल लिया। आरोपी विकास शर्मा को बचाने के लिए अधीक्षण अभियंता से अधीशांसी अभियंता बनाने की खानापूर्ति कर दी। खबर है कि आरोपी विकास शर्मा का फिर से प्रमोशन होने वाला है। सर्वे रिपोर्ट मे इतना बड़ा घपला खेलने वाले अधिकारी के खिलाफ एक्शन की बात को प्रोजेक्ट मैनेजर कर रहे हैं लेकिन अब तक क्या हुआ इसके बारे में अधिकारी लोग कुछ बताने को तैयार नहीं हैं।
बहरहाल एक बार फिर से उक्त लाइन को बिछवाने के लिए सर्वे होगा। इस बार सर्वे का काम कोबरा कंपनी करेगी। लेकिन 2016 मे जिस काम को पूरा होना था पिटकुल के काबिल अधिकारियों की मेहरबानियों से उस काम का अभी सर्वे ही हो रहा है। दूसरी बार होने वाले इस सर्वे की लागत और दूरी दोनो बढ़ चुकी है। अब 90 किलोमीटर दूरी बढ़ने से सर्वे के जिस काम को 530 करोड़ में होना था अब 800 करोड़ में होगा।
पिटकुल के काबिल अधिकारियों की कृपा बरकरार है। हालांकि अगर जिस तरह केंद्र से लेकर राज्य तक भ्रष्ट्राचार के खिलाफ बात की जा रही है उन्ही के अनुरूप कार्रवाई की गई तो तय है कि कई अधिकारियों पर गाज गिरेगी। लेकिन ताजा हालातों में ऐसा होगा ये कहना अभी मुश्किल है। क्योंकि कहावत है हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या?