खबरउत्तराखंड डेस्क- कौन हो सकता है ऐसा शहर,जहां जाना दूर उसकी तस्वीर तक खीचनें की मनाही है। सबसे हैरतअंगेज बात तो ये है कि, ये शहर उस देश का हिस्सा है जिसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर्यटन व्यवसाय है। उस देश मे हर साल 2.4 मिलियन से ज्यादा सैलानी सैर-सपाटे के लिए आते हैं बावजूद इसके सैलानी उस शहर में नहीं घूम सकते। जी हां यकीन मानिए ये सच है।
साइप्रस को तो अाप बखूबी जानते हैं। जो यूरेशियन द्वीप देश है और भूमध्य सागरीय द्वीप समूहों में तीसरा सबसे बड़ा आइलैंड देश है इस देश में ही वो शहर है जहां कोई नही जाता सिवाए उसकी चौकसी करने वाली सेना की टुकड़ी के। जी हां लेकिन हमेशा ऐसा नही था तुर्की के हमले से पहले वो शहर भी दुनिया भर के सैलानियों का खैरमकदम करता था। लोग आते थे उसकी गलियों में घूमते थे उसकी बीचों पर अपना दिन बिताते थे उसके होटल्स में अपनी रात गुजारते थे। मगर अफसोस 1974 के तुर्की हमले के बाद आज वो शहर दुनिया के सबसे बड़े घोस्ट टाउन में तब्दील हो गया है ।
आइलैंड कंट्री साइप्रस का वरोशा शहर ही वो अभागा शहर है जिस पर बंदिशों का पहरा है। 1974 में तुर्की के हमले के बाद ये शहर रातोंरात खाली हो गया था। आज 43 साल हो चुके हैं इस शहर ने कोई सैलानी नही देखा। हमले से पहले इस शहर की आबादी तकरीबन 40 हजार थी लेकिन कहा जाता है कि तुर्की के हमले की रात ही आबादी शून्य हो गई थी। मौत के डर से बचे खुचे लोगों ने आस-पास के शहरों मे छुपकर अपनी जान बचाई। कहा जाता है कि तुर्की सेना ने साइप्रस पर ग्रीस राष्ट्रवादियों के तख्तापलट के विरोध में हमला किया था। तुर्की का कहना था कि हमला उन्होंने साइप्रस में रह रहे अल्पसंख्यक तुर्कीज लोगों की हिफाजत के लिए किया था।
हमले के बाद साइप्रस देश दो हिस्सों मे बंट गया ग्रीस साइप्रस और तुर्की साइप्रस । 1974 के जुलाई हमले के बाद तुर्की साइप्रस का वरोशा शहर तुर्की सेना के कब्जे में है। अब आलम ये है कि कभी सैलानियों से गुलजार रहने वाले वरोशा शहर में यहां सिर्फ तुर्की की पैट्रोलिंग टीम के अलावा किसी भी सैलानी को यहां आने की इजाजत नही है।
तुर्की हमले के बाद साइप्रस के दोनों तरफ के उजड़े शहर दोबारा बस गए, लेकिन अभागा वरोशा वैसा ही पड़ा है। दोनों हिस्सों को बांटने वाली ग्रीन जोन के उत्तर में मौजूद वरोशा पर तुर्की सेना ने सख्त पाबंदी लगा रखी है। वरोशा तारबाड़ से कैंद है ।
फेंसिंग में कैद इस शहर से सटे बाकी के शहरों में जहां जबरदस्त रौैनक है। जबकि वरोशा शहर को लोग भूतिया शहर पुकार रहे हैं। 1974 के हमले मे जो कुछ यहां बचा हुआ है मसलन होटल, आवासीय इमारतें, बार और रेस्टोरेंट सब खंडहर में तब्दील होने की कगार पर है। आज आप तारबाड़ से घिरे वरोशा शहर के भीतर घूमने की तो छोड़िए उसकी फोटो भी नहीं खींच सकते है । तस्वीर खींचने की कोशिश करोगे तो जेल भेज दिए जाओगे।