देहरादून – बात निकली है तो दूर तलक जाएगी, इसका अहसास तो उसी दिन हो गया था जब 20 अक्टूबर को पीएम मोदी ने केदारधाम नें निर्माणकार्यों को शिलान्यास किया था। शिलान्यास पर विपक्ष ने तंज कसा तो शिलापटो पर उकेरे गए नामों ने टीएसआर केबिनेट के कई मंत्रियों को असहज कर दिया।
जाहिर सी बात है कि जब कमान से तीर निकल चुका था तो उसे कहीं न कहीं लगना था। पूर्व सीएम हरीश रावत ने जहां पीएम मोदी के किए शिलान्यासों पर सवाल उठाए तो वहीं केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने पारम्परिक शिष्टाचार को खत्म करने जैसा गंभीर आरोप भाजपा पर लगा दिया। मीडिया में किरकिरी होते देख मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत खुद मोर्चा संभाला।
मीडिया ने शिलापट्टों पर उकेरे नाम, कार्यक्रम के सामान्य शिष्टाचार और शिलान्यासों पर विपक्ष के सवाल सीएम त्रिवेंद्र रावत ने किए तो सरकार असहज हो गई। सीएम ने कहा मीडिया को या तो पूरी जानकारी नहीं है या फिर जो लोग ऐसी बातें कर रहे हैं वो ज्यादा हीं अंधेरे में हैं। सीएम ने जानकारी दी कि केदारपुरी के पुनर्निमाण के लिए धन सीएसआर ( कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसीबिलीटी) फंड जुटाया जा रहा है।
यानि केदारपुरी के विकास के लिए केंद्र सरकार देश के आस्थावान पूजीपति,और कॉरपरेट घरानों की झोली खुलवा रही है। सीएम की बात का यकीन किया जाए तो साफ है कि केंद्र सरकार अपने पल्ले से केदारपुरी में ढेला भी खर्च नहीं कर रही है।
ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि अगर सीएसआर फंड से ही केदारपुरी को भव्य बनाया जा रहा है तो शिलान्यास और शिलापटों की जरूरत क्या थी। वैसे ही उद्योगपतियों की मदद ले ली जाती और उन्हें ही इसका श्रेय दे दिया जाता। केदार और उद्योग के बीच में सरकार क्यों ?
कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं या तो शिलापटों पर किसी का भी नाम नहीं होता तो भी बात खत्म हो जाती उन लोगों का नाम क्यों जिनका कुछ लेना देना ही नहीं। न पर्यटन न धर्मस्व, न सांसद न विधायक सब गायब। बस सरकार के साथ सहकारिता का जलवा न इस खेमे को पच रहा है और उनको तो पचना ही क्यों था।
बहरहाल केदारपुरी के नए शिलान्यासों पर सबको मौका मिला किसी को सवाल करने का किसी को जवाब देने का और किसी को तंज कसने का। सीएम ने मीडिया और विपक्ष की जानकारी पर सवाल किया तो जनता ने तंज कसा ” मरा सिपाही नाम हवलदार”