जिस अधिकारी को जो काम दिया जाए वही काम वो डेढ़ सालों तक करे ही नहीं तो क्या कहा जाए? फिर क्या ये सवाल नहीं उठेगा कि ऐसा अधिकारी अपनी कुर्सी पर क्यों कर बठाया गया। दरअसल ऊधम सिंह नगर के कलेक्टर के तौर पर नीरज खैरवाल की नियुक्ति कई महीनों पहले हुई। होना तो ये चाहिए था कि जिलों में होने वाले आर्बिटेशन के मामले की तेज सुनवाई होगी। लेकिन हैरानी देखिए कि साहब ने महीनों से एक भी मामला नहीं सुना।
आर्बिटेशन के मसले अटके हैं तो अटके ही पड़े हैं। कोई सुनवाई नहीं। साहब नहीं सुनेंगे तो नहीं सुनेंगे। फरियादी आते रहें हैं और लौट कर जाते रहें।
अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि भूमि संबंधी मामलों में कलेक्टर साहब कोई कार्रवाई करेंगे ही नहीं तो फिर होगा क्या। क्या इससे कामकाज प्रभावित नहीं होगा। फिर जब कोई अधिकारी अपना काम ही नहीं कर रहा है कि तो सवाल ये भी है कि उसे वहां बैठाया क्यों गया?
चर्चाओं की माने तो यूएसनगर में पिछले दिनों हुए एनएच 74 घोटाले में आईएएस अफसरों का नाम आने के बाद डीएम साहब कोई मामला सुन ही नहीं रहें हैं।