देहरादून,सबिहा परवीन- इस बार का विधानसभा चुनाव कई मायनों में इतिहास रच रहा है। 2017 के चुनाव में दिलचस्प बात ये है कि जो किसी चुनाव में नहीं हुआ वो इस चुनाव में देखने को मिल रहा है। कहीं नामांकन जलूस में गोलियां चल रही हैं तो कहीं राष्ट्रीय पार्टी निर्दलीय को समर्थन देने के लिए खत जारी कर रही है। सीएम दो सीटों पर चुनाव लड रहे हैं। और भी बहुत कुछ इतिहास बनने जा रहा है तो, इन सबके बीच एक पुराना इतिहास ये भी है कि भाजपा के लिए टिहरी जिले की तीन ऐसी सीटे हैं जो उसके लिए अब तक टफ रही हैं।
इन सीटों पर बीजेपी आजतक चुनावी इम्तिहान पास नहीं कर पाई है। टिहरी, नरेन्द्रनगर और देवप्रयाग सीट पर भाजपा का वनवास इस साल खत्म होगा या नहीं इसको लेकर सियासी हलकों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। राज्य गठन से पहले इन सीटों पर दो-दो बार भाजपा के लगातार विधायक रहे लेकिन राज्य बनने के बाद से लेकर अबतक हुए तीन विधानसभा चुनाव में जनता ने इन तीन सीटों पर भाजपा को नकारा है।
-
टिहरी से 2002 में कांग्रेस के किशोर उपाध्याय ने भाजपा के रतन सिंह गुनसोला का हराया।
-
नरेन्द्रनगर में कांग्रेस के सुबोध उनियाल ने लाखीराम जोशी को और देवप्रयाग में कांग्रेस के मंत्री प्रसाद नैथानी ने भाजपा के रघुवीर पंवार को शिकस्त दी।
-
साल 2007 में टिहरी से भाजपा ने खेम सिंह चौहान को टिकट दिया जो किशोर उपाध्याय से हार गए।
-
नरेन्द्रनगर से यूकेडी के टिकट पर लड़े ओम गोपाल रावत ने कांग्रेस के सुबोध उनियाल को चार मतों से हराया। हालांकि भाजपा के लाखीराम जोशी नंबर तीन पर रहे थे। देवप्रयाग से यूकेडी के दिवाकर भट्ट ने कांग्रेस के मंत्री प्रसाद नैथानी को हराया जबकि भाजपा के मगन सिंह बिष्ट को महज़ 6409 मत ही मिले।
-
2012 में नरेन्द्रनगर से भाजपा ने ओम गोपाल रावत को टिकट दिया जिन्हें सुबोध उनियाल ने हराया। देवप्रयाग से भाजपा के टिकट पर लड़े दिवाकर भट्ट मंत्री प्रसाद नैथानी से हार गए। टिहरी में भाजपा उम्मीदवार धन सिंह नेगी तीसरे पाएदान पर रहे। टिहरी में मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार किशोर उपाध्याय और कांग्रेस के बागी दिनेश धनै के बीच हुआ। जिसमे ंबाजी दिनेश धनै के हाथ लगी। किशोर को 11649 मत हासिल हुए जबकि धनै को 12026 वोट मिले थे।
अब तक के तीन विधानसभा चुनाव में इन तीन सीटों पर भाजपा कमल नहीं खिला पाई है हालांकि इस बार के चुनाव में बीजेपी का दावा है कि बहुमत के साथ विजयी होगी लेकिन क्या इन तीनों पर कमल खिलाकर भाजपा अपना ये सालों पुराना ये वनवास खत्म कर पाएगी ये कहना अभी भी मुश्किल है।