यह कड़वा सच है कि प्रदेश के थानों को सरकार कम, पुलिस अपने बूते ज्यादा चला रही है। थाने की स्टेशनरी से लेकर वाहनों के तेल तक का बजट ऊंट के मुंह में जीरे जितना है। पुलिस का काम जिस तेजी से बढ़ा है, उस हिसाब से संसाधनों की उपलब्धता घटती रही है। पुलिस किन स्रोतों से थानों की व्यवस्था चला रही है, यह किसी से छिपा नहीं है।
पुलिस भ्रष्टाचार और अवैध धंधों के संरक्षण का तो शोर-शराबा तो बहुत है, मगर उनकी जरूरतों को पूरा करने की आवाज कहीं से नहीं उठ रही हैं। एसओ से लेकर एसएसपी भी एक निश्चित दायरे में वित्तीय फैसले ले सकता है।
इतने में कितना दौड़ेगी थाने की बुलेरो
आबादी के साथ थाने का सीमा क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है, मगर थाने की बुलेरों को 150 लीटर तेल ही मिल रहा है। बड़े अपराध पर ही एसएसपी की सिफारिश पर तेल की मात्रा बढ़ सकती है। दिन-रात दौड़ने वाली बुलेरो में खर्च उससे कई गुणा ज्यादा होता है। इस तरह दो किस्तों में 24 घंटे चलने वाली चीता मोबाइल को भी मिलने वाले तेल ऊंट के मुंह में जीरे जितना है। थाने के सिपाही को मोटर साइकिल को मेंटेनेन्स के मात्र साढ़े तीन सौ रुपये मिलते है। इस बजट में वाहन कितना दौड़ सकते है। इसका अंदाज लगाना मुश्किल है.
पांच साल में तीन हजार की वर्दी
दारोगा और इंस्पेक्टर को पांच साल में वर्दी के नाम पर एक बार तीन हजार रुपये मिलते है। हकीकत यह है कि एक वर्दी बनवाने पर ही तीन हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। जबकि अक्तूबर में गर्म और अप्रैल में ठंडी वर्दी की व्यवस्था है। जाहिर है कि गर्मी और सर्दी में कम से कम दो-दो वर्दी जरूरी चाहिए। क्या इस बजट में पांच साल तक वर्दी सिलवाना मुमकिन है? इतने में तो पुलिस के लिए तय मानक का जूता भी खरीदना भी मुमकिन नहीं है। और कहीं वर्दी में कहीं गड़बड़ हो तो पुलिसकर्मी को उसका उच्चाधिकारी दंड तक दे सकता है।
कोई भी केस में अपनी जेब से करने पड़ता खर्च
एटीएम डाटा चोरी कर खातों से रकम उड़ाने के ताजा प्रकरण से अपराधियों को पकड़ने में होने वाले खर्च का अंदाजा लगाया जा सकता है। खातों से रक म उड़ाने के मामले में 100 से अधिक मुकदमे पंजीकृत है। साइबर क्रिमिनलों को चिहिंत करने के साथ पकड़ने में पुलिस, एसटीएफ पर करीब छह से सात लाख खर्च होने का अनुमान है।
देहरादून से लेकर दिल्ली, झज्जर, रोहतक और जयपुर तक पुलिस के वाहन दौड़ते रहे। पुलिस टीम को सरगना रामबीर और अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए विमान से पुणे जाना पड़ा था। नियमानुसार वह इसके पात्र नहीं है, इसलिए इसका खर्च मिलना भी मुमकिन नहीं है।
आए दिन पुलिस पर उठ रहे हाथ(थप्पड़)
और तो और आए दिन पुलिस वाले जनता से लेकर नेताओं तक के अभद्रता और बदसलूकी का शिकार हो रहे है…पुलिस वाले अपराधियों पर कार्रवाही करते है लेकिन उन पर कौन कार्रवाही करेगा जो पुलिस पर खुलेआम हाथ उठाते है. कौन सुनेगा पुलिसकर्मी की. ताजा मामला देहरादून के प्रेमनगर का है जहा महिला जज ने रौब दिखाकर पुलिसकर्मी को थप्पड़ जड़ा. और आज फिर रुद्रपुर में भाजपा कार्यकर्ता ने पुलिस अधिकारी को तू-पाकिस्तानी है कि संज्ञा दी. इसकी भरपाई कौन करेगा, ऐसे लोगों पर कार्रवाही कौन करेंगा.
न कोई छुट्टी, न कोई त्यौहार
हर विभाग में हर कर्मी को साप्ताहिक छुट्टी मिलती है और साथ ही त्यौहार दिवाली, होली, में छुट्टी मिलती है जिसमें व्यक्ति अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी त्यौहार मनाता है लेकिन एक पुलिसकर्मी, एक पुलिस अधिकारी की इन्ही दिनों ड्यूटी का न्यौता आ जाता है और तो और पुलिस वालों के लिए एसा कोई कलेंडर नहीं बना जहां उनके लिए छुट्टी का प्रावधान हो.
टीए-डीए के लिए करना पड़ता लंबा इंतजार
टीए-डीए के नाम पर जो बिल दिए जाएंगे, उसके भुगतान के लिए लंबा इंतजार करना पडे़गा। पुलिस के पास कोई ऐसा फंड नहीं है, जिससे अपराध के अनावरण में होने वाले खर्च को पूरा किया जा सके। ऐसे में समझ सकते है कि पुलिस इसकी भरपाई कहां से करेगी ?