रुड़की, (शुभांगी ठाकुर)- कहते हैं कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है लेकिन जब पाई जाने वाली चीज का साइड इफैक्ट जिंदगी पर भारी पड़ जाए तो बेचैनी बढ़नी लाजमी है। कुछ ऐसा ही हो रहा है रुड़की से सटे बंदा खेड़ी गांव में।
जी हां जिस पीने के पानी को साफ और रंगहीन कहा जाता है वो पानी बंदाखेड़ी गांव में रंगीन भी हो चुका है और झागदार भी। हालात ये हैकि गांव मेंलगे हैंडपम्प से भी कैमिकल युक्त पानी निकल रहा है।लिहाजा दूषित पानी की वजह से बीमारी का डर गांव वालों को सता रहा है लिहाजा बोल कि लब आजाद हैं तेरे की तर्ज पर नाराजगी भी छलक रही है।
ग्रामीणोंका आरोप है कि गांव में आरएसपीएल डिटरजेंट बंनाने वाली कंपनी की वजह से ग्रामीण दूषित जल पीने को मजबूर हो रहे हैं। गांव वालों की माने तो कंपनी ने गांवके पानी को पूरी तरहदूषित कर दिया है। दूषित पानी न जाने कब बीमारी की वजह बन जाए कोई नहीं जानता।
गांव में ये हालत है कि जमीन के भीतर से निकलने वाले झागदार पानी को जानवर और इंसान दोनों पीने को मजबूर हैं। ग्रामीण इलाके में पानी को गंदा करने का दोषी RSPL कंपनी को ठहरा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि डिटरजेंट बनाने वाली कंपनी के कैमिकल नेपूरे क्षेत्र का पानी दूषित कर दिया है। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि कारखाने की करतूत अधिकारियों से लेकर विधायक तक को बता दी गई है बावजूद इसके आज तक कारखाने की जांच तो छोड़िए, पूछ-ताछ तक नहीं हो पाई है।
हालांकि भाजपा के क्षेत्रीय विधायक देशराज कर्णवाल की दलील है कि वे इस मामलेको विधानसभा में उठा चुके है जिसकी जांच के बाद प्रबंधन के खिलाफकार्यवाही किं जाएगी | वही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी कारखाने की जांच और एक्शन लेने की बात कह रहे हैं।
बहरहाल बड़ा सवाल ये है कि जब ग्रामीण कारखाने के रसायन को भूमिगत जल के बर्बादी का कारण मानते हैं तो प्रदूषण नियंत्रण महकमा उसकी जांच क्यों नहीं करवा लेता। वही जलकल विभाग भी पानी की गुणवत्ता की जांच क्यों नहीं करवा लेता! ताकि गांव वाले समझ तो सकें कि जीवन के लिए जरूरी पानी किसकी वजह से कितना खराब हो चुका है।
वहीं सरकार भी समझ सके कि विकास के लिए कौन सा मॉडल सही है, रसायनों से पानी को बर्बाद करने वाला या कुदरत को सहेजते हुए उसके साथ चलने वाला मॉडल।
सवाल ये भी है कि अगर वाकई में कारखाने का रसायन भूमिगत जल को बर्बाद करने का दोषी है तो कछुवे जैसी सुस्त रफ्तार से चलती सरकारी जांचों के सफर के बीच कारखाने का रसायन ग्रामीण और उनके मवेशियों के जीवन को किस हद तक बर्बाद कर रहा है? सरकार को समझना होगा कि जीवन जरूरी है या विकास!