देहरादून- गढ़वाली में एक कहावत है, ‘भिंडी खाणा क जोगी ह्वै्यू अर पलै बसा भुखी रैंह्यों’ सोचा था कुछ और हुआ कुछ। सूबे की सरकार को उम्मीद थी कि राज्य में वस्तु एवं सेवा कर GST से उसका दरिद्र भंजन हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जीएसटी लागू होने की पहली तिमाही की हकीकत ये है कि राज्य की आमदनी में पचास फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जीएसटी से उत्तराखंड को महज 872 करोड़ रूपए का राजस्व हासिल हुआ है।
जबकि जीएसटी लागू होने से पहले राज्य को हर महीने वाणिज्य कर से औसतन 5 सौ करोड़ की आमदनी हो रही थी। जुलाई माह में जीएसटी से राज्य के हिस्से में महज 285 करोड़ ही राजस्व के रूप में मिले। जबकि इसमें से 40 करोड़ IGST के रूप वापस केंद्र को चले गए। इसी तरह अगस्त, सितंबर की आमदनी का भी यही हाल रहा।
गौरतलब है कि अगस्त 2016 में राज्य को 405 करोड़ की आमदनी हुई थी जबकि इस साल महज 285 करोड़ ही राज्य के खाते में आए। वहीं सितंबर 2016 में राज्य को 414 करोड़ हासिल हुए थे जबकि इस साल सितंबर महीने मे राज्य को जीएसटी से केवल 308 करोड़ ही मिले। वहीं अक्टूबर 2017 में 279 करोड़ की आमदनी जीएसटी से हुई। जबकि बीते साल 2016 के अक्टूबर माह में वाणिज्य कर से राज्य को 464 करोड़ रूपए की आमदनी हुई थी।
जिस जीएसटी को लागू करने पर उत्तराखंड सरकार बेहद इतरा रही थी उस जीएसटी के लागू होने के बाद सरकार के माथे पर शिकन की लकीरें हैं। हालांकि जीएसटी में प्राविधान है कि राज्य को नुकसान होगा तो केंद्र उसकी भरपाई करेगा। यानि अगर ये सिलसिला लगातार चलता रहा तो उत्तराखंड को हर बार केंद्र के सामने अपने नुकसान का रोना रोना होगा। राज्य याचक की भूमिका में रहेगा और केंद्र दाता के रूप में गुरूर करेगा। वहीं राज्य की पैरवी करने के लिए सूबे के अधिकारियो को बेवजह का होमवर्क भी करना पड़ेगा।
हलांकि राज्य के वाणिज्य कर अधिकारियों की माने तो GST के नियमों में बार-बार हो रहे बदलाव की वजह से बाजार में अस्थिरता का माहौल है। जिसका असर उत्तराखंड की आमदनी पर पड़ रहा है।