उधमसिंह नगर (मोहम्मद यासीन)- सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी जमीनी हकीकत से कितनी उलट होती है इसकी बानगी देखनी हो तो उत्तराखंड ऊधमसिंहनगर जिले में स्वच्छ भारत अभियान के तहत देखा जा सकता है। सरकारी कागजों में जिला खुले में शौच के अभिशाप से मुक्त घोषित किया जा चुका है। लेकिन जरा जिले के सिकलाई जैसे गांवों का मुआयना किया जाए तो सरकारी झूठ की दास्तान सुनकर रुह कांप जाती है। आलम ये है कि इस गांव के लड़कों के हाथ अब पीले नहीं होते। कोई भी अपनी बेटी को इस गांव में बहू बनाकर नहीं भेजना चाहता।
उत्तराखण्ड की औद्योगिक राजधानी कहलाने वाले ऊधम सिंह नगर जिले में आज भी कई ऐसे शहरी और ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। कल्याणपुर ग्रामसभा का सिकलाई गांव में तकरीबन 70 परिवार निवास करते हैं। जिला मुख्यालय रुद्रपुर के करीब आबाद इस गांव में सिर्फ एक घर में ही शौचालय है।
लिहाजा गाँव के बच्चे,बूढ़े, स्त्री-पुरुष, किशोर-युवा, युवक युवती चाहे कोई भी हों सभी खुले में शौच के लिए अभिशिप्त हैं। घरों में शौचालय न होने का असर गांव के सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ रहा है। घरों में शौचालय न होने के चलते अब इस गांव में कोई अपनी बेटियों को ब्याहने के लिए तैयार नहीं है। लड़की वाले घर में टॉयलेट न होने की बात सुनकर रिश्तों से हाथ खींच लेते हैं। लिहाजा सिकलाई गांव में कुवांरे नौजवान अधेड़ उम्र की ओर बढ़ने लगे हैं।
रोजी-रोटी के लिए दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले सिकलाई गांव की ज्यादातर आबादी की माली हालत ऐसी नहीं कि अपने दम पर ठीक-ठाक शौचालय बनवा ले। जबकि सरकारी आंकड़ो में सूबे का जिला ऊधम सिंह नगर एक साल पहले ही ओ.डी.एफ. घोषित किया जा चुका है।
गजब तो ये है कि पचास साल पुराना सिकलाई गांव जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर दूर है। रुद्रपुर और पंतनगर के बीच बसे सिकलाई गांव के ग्रामीणों की माने तो उनका गांव सरकारी रिकॉर्ड में है ही नहीं। जबकि यहां के सभी निवासियों के राशनकार्ड, वोटर कार्ड और आधार कार्ड सब बने हुए हैं। गांव वालों की माने तो उनकी खोज-खबर सिर्फ चुनावों के दौरान होती है। वैसे किसी भी अफसर और जनप्रतिनिधि को ग्रामीणों की तकलीफों से कोई लेना देना नहीं है।