फूल से नाजुक बच्चे सबको प्यारे लगते हैं। बावजूद इसके हमारे देश के एक हिस्से में गोरे बच्चे मार दिए जाते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं अंडमान निकोबार प्रदेश की जहां ये क्रूर प्रथा न जाने कब से जारी है लेकिन जनजाति मामलों मे ज्यादा दखल न देने की वजह से कोई एक्शन नही लिया जाता।
अंडमान मे उत्तरी इलाके के दीपसमूह में हजारों साल से रह रही जारवा जनजाति के बीच ये प्रथा सदियों से चली आ रही है। इस क्रूर प्रथा में उन बच्चों को मार दिया जाता है जिनका रंग अपने समुदाय से अलग हो जिनकी मां विधवा हो जाती है या फिर पिता दूसरे समुदाय से होते हैं।
बताया जा रहा है कि जारवा समुदाय ये सब इसलिए करता है कि अलग रंग का होने से उन्हे बच्चा अपने समुदाय का नहीं लगता । पिछले कुछ महीनों में यहां ऐसे बच्चों की हत्या के कई मामले सामने आए हैं। अंडमान पुलिस के सामने मुश्किल यह है कि वह शिकायत पर एक्शन ले या फिर जनजाति की परंपरा को बनाए रखे।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जारवा समुदाय की आबादी करीब 400 है। अंडमान के जारवा ट्राइब्स इलाकों में विदेशी या बाहरी लोगों के आने पर प्रतिबंध है। जनजाति पर लंबे समय से शोध करने वालों की माने तो उनकी परंपरा होने के नाते कभी दखल नहीं दिया। इस प्रथा का खुलासा इसलिए हुआ कि एक शख्स ने इस क्रूर प्रथा को अपनी आंखों से देखा और उसकी शिकायत पुलिस से कर दी। शिकायत करने वाले ने बताया जा रहा है कि एक बच्चा जन्म लेने के करीब 5 महीने बाद अचानक गायब हो गया था और बाद में वह रेत में दफनाया हुआ मिला था।