देहरादून- जी हां यकीन मानिए अगर राज्य के वित्त विभाग का यही लचर रवैया रहा तो उत्तराखंड में कई जन स्वास्थ्य सेवाएं धनाभाव के कारण ठप्प हो जाएगी। ये बात इसलिए कही जा रही है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जारी स्वास्थ्य सेवाओं को दुरूस्त रहने के लिए केंद्र सरकार अपना अंशदान कई किश्तों में राज्य के लिए जारी कर चुकी है लेकिन राज्य का वित्त महकमा है कि केंद्र से मिले जन स्वास्थ्य के पैसे पर कुंडली मार कर बैठ गया है।
ताज्जुब तो इस बात का है कि NHM उत्तराखंड कई बार सूबे के वित्त विभाग को रिमांइडर भी भेज चुका है कि एनएचएम का पैसा रिलीज कीजिए ताकि सूबे की बेपटरी हुई स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को पटरी पर लाया जाए। बावजूद इसके राज्य का वित्त विभाग कान मे तेल देिए सोया हुआ है। उसे न तो जन स्वास्थ्य से कोई सरोकार दिख रहा है और न ही केंद्र सरकार का कोई डर।
गजब तो ये है कि 174 करोड़ से ज्यादा का फंड केंद्र सरकार राज्य में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए जारी कर चुका है। बावजूद इसके राज्य ने अपने हिस्से का 25 करोड़ से ज्यादा का अंशदान तो छोड़िए केंद्र से मिले पैसे को भी एनएचएम के लिए रिलीज नहीं किया। राज्य में एनएचएम की योजनाएं सलीके से चलें और आम आदमी को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें इसके लिए वित्त विभाग ने अभी तक एनएचएम को ढेला भी नहीं दिया।
जिसका सीधा सीधा असर जन स्वास्थ्य सेवाओं पर पर पड़ा है। आलम ये है कि जहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना से जुडे मुलाजिमो को वेतन के लाले पड़े हुए हैं। वहीं जन स्वास्थ्य से जुड़ी कई योजनाओं को निदेशक अपनी गुडविल पर चलाने के लिए मजबूर हैं। अभी राज्य में रूबेला टीकाकरण कार्यक्रम को भी बिना पैसे के ही राज्य में जारी करने के लिए एनएचएम के निदेशक को मजबूर होना पड़ा।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा? राज्य में पहले ही जन स्वास्थ्य सेवाओं का सवाल कोढ़ बना हुआ है उस पर राज्य के वित्त महकमें का रवैया कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। आपको बता दें कि अब तक NHM राज्य के वित्त विभाग को इसी साल 2017 में मई से लेकर अक्टूबर तक सात रिमांइडर भेज चुका हैं।