धनोल्टी (सुनील सजवाण)- टिहरी जनपद का जौनपुर क्षेत्र अपनी लोक संस्कृति और लोक मान्यताओ के लिए देश ही नही अपितु विदेशो मे भी अपनी एक अलग पहचान रखता है। सदियों पुरानी विरासत आज भी अपने लोक रंग-रूप मे इस इलाके में आज भी जिंदा है। नई पीढ़ी पुराने पीढ़ी के रीत-रिवाजों को मोबाइल में सिमटी हुई दुनिया के बावजूद अपनाए हुए हैं और उस पर गर्व कर रहे हैं।
जौनपुर की बोली भाषा खान पान वेश भूषा संस्कृति ही इस क्षेत्र की अलग पहचान है। इस क्षेत्र मे 12 महीने में 12 त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों मे यहां भादौ के महीने में दुबडी का पर्व बडी धूम धाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार में फसलो की पूजा की जाती है।
भादो के महीने में खेतों की हरियाली के साथ जौनपुर का कुदरती हुस्न बेहद हसीन हो जाता है। खेतों में कई पकी- अधपकी फसलें खेतो मे अपनी रंगत बिखेरती हैं। कहीं मक्की, कोणी, चीणा, झंगोरा, जैसे मोटे अनाज की बालियां अपनी अोर लुभाती है तो कहीं पोष्टिक चावल की 60 दिन मे तैयारी होने वाली साठी नस्ल की महक अपनी छटा बिखेरती है, तो कहीं सब्जियों की लकदक बेलें और भरे-पूरे खेत समृद्धि का अहसास दिलाते हैं। पूरा जौनपुर निखरा-निखरा दिखाई देता है।
मान्यता है कि गुजरे दौर में जब गांवों की आर्थिकी पूरी तरह से पशुपालन और खेती किसानी पर निर्भर हुआ करती थी उस दौर में भादौ के महिने में दुर्गा अष्टमी के दिन सभी फसलों के पौधों को समूह के रूप मे इकट्ठा किया जाता था। फसलों के समूह को गांव में पूजा जाता था। खेतों मे लहलहाती हरी फसलों के पौधों को एक जगह पर इक्ट्ठा करने को ही दुबड़ी कहा जाता था।
उस दौर में आज की तरह न इंटरनेट मार्केटिंग थी न आजकल की तरह मुहल्लों में दुकान-बाजार। तब नमक और कपड़े के लिए बाजार हुआ करते थे लेकिन वो बहुत दूर-दूर होते थे। वस्तु विनिमय का दौर था बाजार मे भी अनाज, घी और शहद के बदल नमक, गुड़ और कपड़ा मिला करता था। घर-गृहस्थी पूरी तरह से खेत खलिहान और पालतू चौपाए जानवरों पर निर्भर थी। लिहाजा आस्थावान लोग धरती को मां मानते थे। खेत में उगने वाली फसल से ही पूरे साल भर अपने परिवार का भरण पोषण होता था लिहाजा फसलों की पूजा भी किया करते थे ताकि पूरे साल अन्न की कमी न रहे और अन्न देवता की कृपा गांव पर बनी रहे। फसलों के ये पूजा भादौ महिने मे दूबड़ी के तौर की जाती थी। आज भी जौनपुर क्षेत्र के लोग बडी धुम धाम दूबड़ी पर्व को मनाते हैं और फसलो की दुबडी बनाकर अन्नदेवता की पूजा करते हैं। मान्यता है कि अन्नदेवता इस पूजा से प्रसन्न रहते है और गांव को सुख समृद्धी का वरदान देते है।
जौनपुर क्षेत्र मे दुबडी के त्योहार को दो रूपो मे मनाया जाता है मान्यताओ के अनुसार इस त्योहार को जौनपुर क्षेत्र मे अलग अलग ढंग से मनाया जाता है।
पहले रूप मे – जौनपुर क्षेत्र के नैनबाग घाटी मे इस त्योहार को भादौ के महिने की सारी फसलो के एक एक पोधे को खेतो से जड से निकाल कर गांव के पंचायत चौक जिसे स्थानिय भाषा मे मण्डाण भी कहा जाता है। वहां पर एक स्थान में छोटा सा गड्ढा करके अनाज के सभी पोधो को रखा जाता है। रात के समय मे गांव की महिलएं इन आनाज के पौधो से बनी दुबडी की पूजा स्थानीय वाद्य यन्त्र ढोल दमाउ और रणसिंगे की थाप पर करती हैं।
पूरे गांव के साथ साथ बाहरी मेहमान गांव की बेटिया जो दुसरे गांव मे जिनकी ससुराल है जिन्हे स्थानिय भाषा मे दयाणी कहा जाता है व गांव की बहुवें जिन्हे रेणी कहा जाता है सभी इस पूजा मे सम्मलित होती है पूजा समापन के बाद अनाज के पोधो से बनी दुबडी के अंश प्राप्ती के लिए संघर्ष होता है जिसे छिना जाता है। अनाज पौध को छीनने के क्षण की छटा दुबड़ी पर्व का सबसे महत्वपूर्ण पल होता है जो देखते ही बनता है। हर कोई दुबडी के अशं को पाने की कोशिश करने के लिए संघर्ष करता है।
संघर्ष में हासिल अनाज वाले पोधे के उस अंश को लोग अपने मकान की छत पर फेंकते है मान्यता है कि यह अंश जिस घर की छत पर फेंका जाता है उस घर मे सुख समृद्वि के साथ साथ अन्न व धन्न की कमी नही होती है। इसलिए प्रत्येक आदमी अपने घर की छत पर दुबडी के अंश को फेंकते है। इस त्योहार मे नाच गानो के साथ लोग इस त्योहार को बडी धूम धाम व भाई चारे से मनाते है।
दुसरे रूप मे – इस त्योहार को जौनपुर क्षेत्र के थत्यूड क्षेत्र मे भी बडी धुम धाम से मनाया जाता है इस क्षेत्र मे नई फसलो की पूजा के साथ साथ यहां के इष्ट देवता नाग देवता की पूजा मुख्य रूप से की जाती है रात के समय मे गांव के लोग मिलकर फसलों की पूजा करते है। इसके साथ ही साथ नाग देवता को ‘नउण’ यानि दुध का भोग लगाते हैं। गांव के मनाण चौक मे रात भर देवता अपने पश्वाओं पर अवतरित होकर नाचते हैं और नाग देवता की डोली को गांव वाले ढोल की थाप पर नचाते है। बाहरी क्षेत्र से भी मेहमान इस त्योहार मे हिस्सा लेते है ।
कई गांवो मे पाण्डो नुत्य नउण मेले के रूप मे इस क्षेत्र मे इसे मनाया जाता है। इस दौरान जौनपुर की सांस्कृतिक छटा देखते ही बनती है। रंग-बिरंगी परंपरागत पोशाकों में सजी-धजी महिलाएं और पुरुष जौनपुर के मशहूर तांदी नृत्य की लय मे लोक गीतो की धुन के साथ थिरकते हैं। इसके साथ ही स्थानीय संस्कृति का हिस्सा मशहूर हारूल, रांसु, पाण्डो, छोपती नृत्य भी किया जाता है। ढोल दमाउ और रणसिंगे की थाप पर हर कोई नाचने को मजबूर हो जाता है ।