भगवानपुर( शुभांगी ठाकुर) – उत्तराखंड सिर्फ भारत के नक्शे में उत्तर प्रदेश से अलग हुआ है। हकीकत में नहीं, सरकारी मुलाजिमों की ऐंठ,रूआब उत्तरप्रदेश वाला ही है। सरकारी अस्पतालों का हाल भी वैसा ही जैसा यूपी में हैं यहां भी मरीजों को वैसा ही टार्चर किया जा रहा है जैसा उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में किया जाता है।
मीडिया मे उत्तरप्रदेश की तस्वीरों से इतर उत्तराखंड की तस्वीर नहीं है। जबकि राज्य आंदोलन के दौरान बेहद हसीन ख्वाब सजाए गए थे। ताजा हाल ये है कि यहां भी पहाड़ों में ऐन वक्त पर ऐंबुलेंस सेवा नहीं मिलती तो सरकारी अस्पतालों में मरीज को ईलाज नहीं मिलता।
अब तो उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों की जो बदरंग तस्वीर सामने आ रही है उससे तो डर लगने लगा है। लगता ही नहीं कि धरती के भगवान माने जाने जाने वाले सरकारी अस्पतालों का बर्ताव इतना क्रूर हो सकता है।
जी हां हरिद्वार जिले के भगवानपुर में बने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी ऐसे ही आरोप लगे हैं। खबर के मुताबिक एक प्रसूता को अस्पाल में तब दाखिल किया गया जब उसने आधा घंटा ई-रिक्शा में प्रसव की वेदना झेली और तड़पते हुए बच्चे को जन्म दे दिया।
बताया जा रहा है कि भगवानपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आशा अपने क्षेत्र की एक प्रसूता महिला को लेकर गई ताकि अस्पताल मे महिला को सही वक्त पर सही ईलाज मिले और जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ रहें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। परिजन कहते हैं कि अस्पताल में न तो कोई डॉक्टर मौजूद था और न कोई नर्स। रहे भी होंगे तो किसी ने भी प्रसव की पीड़ा झेलती महिला की न तो चीख-पुकार सुनी और न आशा कार्यकर्ती की गुहार।
एक एक पल पीड़िता पर भारी गुजरता रहा दर्द से मजबूर होशो हवास खो चुकी प्रसूता ने ई-रिक्शा में ही दर्द सहते हुए बच्चे को जन्म दे दिया। जैसे ही खबर अस्पताल प्रशासन तक पहुंची दामन पर दाग लगेने से बचाने के लिए आनन-फानन में महिला को अस्पताल में दाखिल किया गया।
इसके साथ ही साथ मामले पर लीपापोती की स्कीम भी बनाई गई। आलम ये है कि परिजन अपने साथ हुई आपबीती सुना रहे हैं जबकि अस्पताल प्रशासन सारे वाकए को सिरे से ही खारिज कर रहा हैं। आलम ये है कि जिस उत्तराखंड को देवभूमि पुकारा जाता है उस उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में मोटी सरकार पगार लेने वाले कारिंदे ही उसकी साख पर बट्टा लगाया जाने का काम बेफिक्री से कर रहे हैं।
मतलब साफ है कि पिछले सोलह साल मे सूबे का सिर्फ नाम बदला है काम उत्तरप्रदेश वाले अंदाज में ही होता है। न वक्त पर एंबुलेंस मिलती है और न जरूरतमंदो को समय पर इलाज।